आत्मनिवेदन-आभार-क्षमायाचना और स्वस्तिकामना
२ जनवरी २०१९ को राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष पद से त्याग पत्र देने के बाद मैं स्वाभाविक रूप से अकादमी की मासिक पत्रिका मधुमती का संपादक नहीं रह गया ह।
किन्तु यह सर्वविदित है कि जो अंक आज आफ हाथों में आ रहा होता है, उसकी संपादन-प्रकि्रया महीने, दो-महीने पूर्व ही प्रारंभ हो जाती है। चकि प्रस्तुत अंक मेरे संपदनाधीन तैयार हुआ है अतः इस रूप में यह मेरा आखिरी संपादकीय है। इस विसर्जन-वेला पर सदा की भोति कुछ वैचारिक-साहित्यिक चर्चा न करके पाठकों से एक निवेदन करना चाहता ह।
मधुमती हमारी अपनी पत्रिका है। हमने मनोयोगपूर्वक - पूरे मन और खुली दृष्टि से- इसे पुनर्प्रतिष्ठित कर इसे देश की अग्रणी साहित्यिक पत्रिका के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है। पिछलपे डेढ वर्ष में देश के ख्यातनाम रचनाकारों के साक्षात्कार और रचनाऐ छाप कर हमने इसकी लोकप्रियता को बढाया है। यह आत्ममुग्धता नहीं आत्मावलोकन है और
तथ्याधारित है।
मैंने जब मधुमती का काम संभाला तब इसकी कीमत दस रुपया मात्र थी। पृष्ठ संख्या के अनुसार यह बहुत घाटे की स्थिति थी। हमने जब इसकी कीमत बीस रुपया करने का निर्णय किया, तो मन में एक हल्की-सी आशंका थी कि इससे कहीं पाठक संख्या कम न हो जाए। तो हमने मन में संकल्प किया कि हम इसकी गुणात्मक उत्कृष्टता पर ध्यान केन्दि्रत करेंगे, श्रेष्ठ से श्रेष्ठ रचनाऐ राजस्थान और देशभर से प्राप्त कर इसका स्तरोन्नयन करेंगे और प्रबु= पाठक वर्ग को जोडें रखेंगे।
हमारे लिए यह आत्मतोष की बात रही कि मधुमती का मूल्य दुगुना कराने पर भी इसकी पाठक संख्या में कमी नहीं आई अपितु उसमें वृ= ही हुई है। यह सब सम्पन्न हुआ इसके पाठकों, लेखकों और साहित्यकारों के अकूत स्नेह और सहयोग के कारण। अपने इन प्रिय पाठकों और रचनाकारों से मुझे यह निवेदन करने का अधिकार है कि वे ’मधुमती‘ से इसी भोति जुडे रहकर इसकी महाा कायम रखेंगे।
किसी पत्रिका की लोकप्रियता और गुणवाा कायम रखने में उसकी संपादकीय टीम और प्रबन्धन तन्त्र की भी महवपूर्ण भूमिका होती है। अकादमी के सचिव सहित सभी कार्मिकों ने तत्परता और निष्ठापूर्वक इसे बनाए रखा। प्रसन्नता की बात है कि यह टीम यथावत् है और आशा है कि मधुमती की प्रतिष्ठा को बनाये रखने में यह अब और अधिक कुशलता के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाएगी।
मेरे कार्यकाल में जिन रचनाकारों की रचनाऐ मधुमती में छपने से वंचित रह गई उन सभी से क्षमायाचना। जिन पाठकों, लेखकों, साहित्यकों और शुभचिन्तकों से हमें सहयोग, सम्बल, सुझाव और मार्गदर्शन प्राप्त हुए, उन सभी का बहुत-बहुत आभार।
वर्ष २०१९ आप सभी के लिए मंगलमय हो। इसी स्वस्तिकामना के साथ। इतिशुभम्।।
किन्तु यह सर्वविदित है कि जो अंक आज आफ हाथों में आ रहा होता है, उसकी संपादन-प्रकि्रया महीने, दो-महीने पूर्व ही प्रारंभ हो जाती है। चकि प्रस्तुत अंक मेरे संपदनाधीन तैयार हुआ है अतः इस रूप में यह मेरा आखिरी संपादकीय है। इस विसर्जन-वेला पर सदा की भोति कुछ वैचारिक-साहित्यिक चर्चा न करके पाठकों से एक निवेदन करना चाहता ह।
मधुमती हमारी अपनी पत्रिका है। हमने मनोयोगपूर्वक - पूरे मन और खुली दृष्टि से- इसे पुनर्प्रतिष्ठित कर इसे देश की अग्रणी साहित्यिक पत्रिका के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है। पिछलपे डेढ वर्ष में देश के ख्यातनाम रचनाकारों के साक्षात्कार और रचनाऐ छाप कर हमने इसकी लोकप्रियता को बढाया है। यह आत्ममुग्धता नहीं आत्मावलोकन है और
तथ्याधारित है।
मैंने जब मधुमती का काम संभाला तब इसकी कीमत दस रुपया मात्र थी। पृष्ठ संख्या के अनुसार यह बहुत घाटे की स्थिति थी। हमने जब इसकी कीमत बीस रुपया करने का निर्णय किया, तो मन में एक हल्की-सी आशंका थी कि इससे कहीं पाठक संख्या कम न हो जाए। तो हमने मन में संकल्प किया कि हम इसकी गुणात्मक उत्कृष्टता पर ध्यान केन्दि्रत करेंगे, श्रेष्ठ से श्रेष्ठ रचनाऐ राजस्थान और देशभर से प्राप्त कर इसका स्तरोन्नयन करेंगे और प्रबु= पाठक वर्ग को जोडें रखेंगे।
हमारे लिए यह आत्मतोष की बात रही कि मधुमती का मूल्य दुगुना कराने पर भी इसकी पाठक संख्या में कमी नहीं आई अपितु उसमें वृ= ही हुई है। यह सब सम्पन्न हुआ इसके पाठकों, लेखकों और साहित्यकारों के अकूत स्नेह और सहयोग के कारण। अपने इन प्रिय पाठकों और रचनाकारों से मुझे यह निवेदन करने का अधिकार है कि वे ’मधुमती‘ से इसी भोति जुडे रहकर इसकी महाा कायम रखेंगे।
किसी पत्रिका की लोकप्रियता और गुणवाा कायम रखने में उसकी संपादकीय टीम और प्रबन्धन तन्त्र की भी महवपूर्ण भूमिका होती है। अकादमी के सचिव सहित सभी कार्मिकों ने तत्परता और निष्ठापूर्वक इसे बनाए रखा। प्रसन्नता की बात है कि यह टीम यथावत् है और आशा है कि मधुमती की प्रतिष्ठा को बनाये रखने में यह अब और अधिक कुशलता के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाएगी।
मेरे कार्यकाल में जिन रचनाकारों की रचनाऐ मधुमती में छपने से वंचित रह गई उन सभी से क्षमायाचना। जिन पाठकों, लेखकों, साहित्यकों और शुभचिन्तकों से हमें सहयोग, सम्बल, सुझाव और मार्गदर्शन प्राप्त हुए, उन सभी का बहुत-बहुत आभार।
वर्ष २०१९ आप सभी के लिए मंगलमय हो। इसी स्वस्तिकामना के साथ। इतिशुभम्।।