चंचला पाठक की कविताएँ
चंचला पाठक
आत्मा पर लकीरें नहीं पडती-
शाश्वत और निरवयव है
इस ब्रह्मवाक्य को स्पर्श करती हुई
जाने कितनी बार छुआ है मैंने
तेरे नाम की लकीरों को
अपनी आत्मा पर
इन्हीं की पगडण्डियों पर लोटती है
वैशाख की दुपहरी में मेरी अन्तरात्मा
जाने कितने घट बँधे हैं
मेरी स्मृतियों के अश्वत्थ पर
जाने कितने दाहकर्म निशान्त हुए
निर्जन-से इन अधरों पर
छन्न से छनक जाती हैं नदियाँ यहाँ
निर्बाध उतरती हुई
मुझसे छूटी
निःश्वास भी लौट आती है
मुझी में पुनः-पुनः
तुम्हारे होने के अनहद की
महागाथा का पर्याय -
तुम्हारे न होने के अक्ष पर
अद्वैत साधता है कि
जीवन उच्चारता है मृत्यु.....
निरन्तर यही जोह रही
यही बाँच रही
आदिम समय में भी
आँसू के कतरे से
दरिया बहा होगा क्या...
ठहरा होगा क्या
निमिष भर को
एक यायावर वहाँ
ठिठककर मुडी होगी न
पगडण्डी कोई
कोई रात महक उठी होगी क्या
लहरों की नमी से
मृदंग बाँध पदचापों से
सुगंध
लीपती होगी क्षितिज को
किसी एकान्त का स्वरभंग
तुम्हारे प्रगाढ आलिंगन-सा मधुर था क्या
एक कतरा आँसू का
अपनी यात्रा पर निकला है
और
तुम पास नहीं
देखना
इसकी बाढ में विलीन न हो जाऊँ मैं
प्रश्न सारे
बेतुके और बेमियाद भुगत हैं मेरे
खे रही हूँ
खुद को खुद से ही...
तुम्हारे ही महासमुद्र में
अहल्या
बनती रही है
पत्थर
तब भी
जब प्रेमपूत निगूढ
पलों में
कोई इन्द्र
कर जाता है
स्मृति स्पर्श
कहने को तो
कई वृत्तांत हैं
कुछ
प्रलाप से
कुछ विलाप से
रह सकते हैं
निरन्तर
पर
मैंने
चुन ली है
नीम चुप्पी
भरभराकर गिर पडती है जो
एकसंग में मेरे
जैसे
ऐन कोई उत्ताल लहर
गिरती हो
वापिस
घहराते समुद्र में
अँखुआई हुई
मृत्यु का नाम
तब
प्रेम था
अब
नग्न
निरावृत्त
मृत्यु ही है
नाम संज्ञा विहिन
किसी कपाट से
आखिर
कीलते ही हो न
मुझे
वाद-विवाद-संवाद
चयन की
स्वतन्त्रता का उन्मेष
इतने तरल और क्षैतिज नहीं
कि
तैर सके
मेरी देह ससंभूति आनन्दमग्न
मौन के अनहद
का गान
कलपते हैं
अन्तहीन
इस कोलाहल से
मैं तपती धूप में
नृत्यरत होना चाहती हूँ
तुम्हारी
पुतलियों का रास
मेरे स्वेद कणों का
मीठा उपालम्भ बन
जब रचे
अन्तहीन
अद्वैत
अमृत
हो जाना चाहती हूँ
छूट रहे तुम कि
ठिठक रही है कविता -
साँसों पर सलवटें पड रहीं
जीवन के इस बीहड में कितने महासमुद्र हैं!
और ,
कहाँ हैं मुझमें अष्टसिद्धियाँ जो
कर दूँ इन्हें गोष्पदी!
नौका पतवार नौकायन ...
उस तट ही छूटा
वैतरणी शेष रही है बस!
सम्पर्क - ए-39, गाँधी कॉलोनी, पवनपुरी, बीकानेर -334003
मो.9828369828
शाश्वत और निरवयव है
इस ब्रह्मवाक्य को स्पर्श करती हुई
जाने कितनी बार छुआ है मैंने
तेरे नाम की लकीरों को
अपनी आत्मा पर
इन्हीं की पगडण्डियों पर लोटती है
वैशाख की दुपहरी में मेरी अन्तरात्मा
जाने कितने घट बँधे हैं
मेरी स्मृतियों के अश्वत्थ पर
जाने कितने दाहकर्म निशान्त हुए
निर्जन-से इन अधरों पर
छन्न से छनक जाती हैं नदियाँ यहाँ
निर्बाध उतरती हुई
मुझसे छूटी
निःश्वास भी लौट आती है
मुझी में पुनः-पुनः
तुम्हारे होने के अनहद की
महागाथा का पर्याय -
तुम्हारे न होने के अक्ष पर
अद्वैत साधता है कि
जीवन उच्चारता है मृत्यु.....
निरन्तर यही जोह रही
यही बाँच रही
आदिम समय में भी
आँसू के कतरे से
दरिया बहा होगा क्या...
ठहरा होगा क्या
निमिष भर को
एक यायावर वहाँ
ठिठककर मुडी होगी न
पगडण्डी कोई
कोई रात महक उठी होगी क्या
लहरों की नमी से
मृदंग बाँध पदचापों से
सुगंध
लीपती होगी क्षितिज को
किसी एकान्त का स्वरभंग
तुम्हारे प्रगाढ आलिंगन-सा मधुर था क्या
एक कतरा आँसू का
अपनी यात्रा पर निकला है
और
तुम पास नहीं
देखना
इसकी बाढ में विलीन न हो जाऊँ मैं
प्रश्न सारे
बेतुके और बेमियाद भुगत हैं मेरे
खे रही हूँ
खुद को खुद से ही...
तुम्हारे ही महासमुद्र में
अहल्या
बनती रही है
पत्थर
तब भी
जब प्रेमपूत निगूढ
पलों में
कोई इन्द्र
कर जाता है
स्मृति स्पर्श
कहने को तो
कई वृत्तांत हैं
कुछ
प्रलाप से
कुछ विलाप से
रह सकते हैं
निरन्तर
पर
मैंने
चुन ली है
नीम चुप्पी
भरभराकर गिर पडती है जो
एकसंग में मेरे
जैसे
ऐन कोई उत्ताल लहर
गिरती हो
वापिस
घहराते समुद्र में
अँखुआई हुई
मृत्यु का नाम
तब
प्रेम था
अब
नग्न
निरावृत्त
मृत्यु ही है
नाम संज्ञा विहिन
किसी कपाट से
आखिर
कीलते ही हो न
मुझे
वाद-विवाद-संवाद
चयन की
स्वतन्त्रता का उन्मेष
इतने तरल और क्षैतिज नहीं
कि
तैर सके
मेरी देह ससंभूति आनन्दमग्न
मौन के अनहद
का गान
कलपते हैं
अन्तहीन
इस कोलाहल से
मैं तपती धूप में
नृत्यरत होना चाहती हूँ
तुम्हारी
पुतलियों का रास
मेरे स्वेद कणों का
मीठा उपालम्भ बन
जब रचे
अन्तहीन
अद्वैत
अमृत
हो जाना चाहती हूँ
छूट रहे तुम कि
ठिठक रही है कविता -
साँसों पर सलवटें पड रहीं
जीवन के इस बीहड में कितने महासमुद्र हैं!
और ,
कहाँ हैं मुझमें अष्टसिद्धियाँ जो
कर दूँ इन्हें गोष्पदी!
नौका पतवार नौकायन ...
उस तट ही छूटा
वैतरणी शेष रही है बस!
सम्पर्क - ए-39, गाँधी कॉलोनी, पवनपुरी, बीकानेर -334003
मो.9828369828