वो अजनबी
शालिनी गोयल
स्टेशन पर आते ही पता चला कि ट्रेन आधा घण्टा देरी से आएगी, तो पहले से ही खराब मेरा मन अब तो बुरी तरह तडप गया। मगर स्टेशन पर बैठ कर ट्रेन का इंतिजार करने के सिवा और कोई चारा नहीं था, मेरे पति ने एक बार कहा भी कि प्रतीक्षालय में चल कर बैठते हैं मगर मैंने मना कर दिया और वहीं बेंच पर बैठ गई।
रिश्तेदारों की शादी में शरीक होना मुझे हमेशा से कुछ ज्यादा पसन्द नहीं, एक तो किसी चीज की कोई व्यवस्था नहीं होती और दूसरा बिना किसी को कुछ कहें सब बर्दाश्त करना होता है। मगर कहते हैं ना कि दुनियादारी नाम की भी कोई चीज है इस दुनिया में और हम सब उसे ही निभा रहे हैं।
शादी की थकान में ट्रेन की देरी ने मानो आग में घी का काम किया,जब तक ट्रेन आई मेरा मूड पूरी तरह खराब हो चुका था। ट्रेन के आते ही सभी अपनी अपनी सीटों की तरफ चल दिए,सामान व्यवस्थित करने के बाद मैं भी सुस्ताने के लिए अपनी सीट पर पैर फैला कर बैठ गई,आस-पास की सीटों पर गौर किया, तो सभी पर लोग बैठे थे, बस मेरे सामने वाली सीट खाली थी, डिब्बे में लोगों की भीड को देखकर ये साफ था कि हमारे देश में शादी समारोह भी किसी त्यौहार से कम नहीं होते, आजकल की भाषा में इसे फैमिली रियूनियन भी कहा जाता है।
अभी मैंने आँखें बन्द करी ही थी कि छोटे-छोटे बच्चों की आवाज ने मुझे चौंका दिया, एक महिला अपने दो बच्चों के साथ मेरे सामने वाली सीट पर बैठने को तैयार थी, मगर पहले वह अपने साथ लाए सामान को व्यवस्थित करने में जुटी थी, सामान मेरे अन्दाजे से कुछ ज्यादा ही था,दो छोटे बच्चों के साथ इतना सारा सामान किसी को भी परेशान करने के लिए काफी था और उस महिला के चेहरे से परेशानी साफ झलक रही थी कुछ देर बाद वह सीट पर बैठ गई, चेहरे पर थकान और परेशानी के मिले-जुले भाव दिखाई दें रहे थे, बेहद साधारण-सी साडी पहने उस महिला की आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाना मेरे लिए मुश्किल नहीं था।
मैडम, जरा ध्यान रखना बच्चों के साथ ये अकेली है। एक अधेड उम्र की औरत ने मुझे देखते हुए कहा और बच्चों के सिर पर प्यार से हाथ फेर दिया। जी,जरूर मैंने उन्हें आश्वासन दिया। यूँ मुझे बच्चों का साथ हमेशा भाता है, मगर आज चूँकि मेरा मूड खराब था इसलिए मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।
ट्रेन धीरे-धीरे सरकने लगी, तो बच्चों और महिला ने बाहर खडी महिला को देखकर हाथ हिलाना शुरु कर दिया, उस महिला की आँखों की नमी देखकर मैं जान गई कि वो अपने मायके से विदा हो रही हैं, अनजाने ही वो मुझे कुछ अपनी-सी लगी शायद बेटी होने का हमारा दर्द सांझा था।
बातों-बातों में उसने मुझे बताया कि वह अपने मायके अपनी छोटी बहन की शादी में शरीक होने आई थी पतिदेव पहले ही चले गए हैं और वो आज अपनी ससुराल लौट रहीं थी,बहन की शादी की एक-एक घटना वो मुझे पूरे विस्तार से सुना रही थी और ना चाहते हुए भी मैं उस शादी में शामिल हुई जा रही थी, अपनी छोटी बहन के बारे में बताते हुए उसके चेहरे पर एक अनोखी चमक आ गई थी, कितना खूबसूरत होता है दो बहनों का रिश्ता, जितना प्यार और अपनापन इस रिश्ते में है शायद ही किसी और रिश्ते में हो।
हमारी बातें अभी कुछ और चलती, मगर उसका फोन बज उठा,दूसरी तरफ शायद उसके पतिदेव थे क्योंकि वह उन्हें अपने डिब्बे और सीट के बारे में सब बता रही थी। फोन की घण्टी सुनकर अब तक आराम से सो रही उसकी बेटी भी जग गई,वह उसे सम्भालने में व्यस्त हो गई और मैंने अपने साथ लाई पत्रिका के पन्ने पलटना शूरू कर दिया, मगर पता नहीं क्यों मेरा मन उसमें नहीं लगा, तो मैंने उसे बन्द करके एक तरफ रख दिया और आदतन अपने मोबाइल में मैसेज चैक करने लगी। कुछ देर की शांति के बाद उस महिला ने फिर बताना शुरू किया, उसके पिता किसी सरकारी दफ्तर में बाबू हैं अभी कुछ दिनों पहले उनका ट्रांसफर कहीं और हो गया है इसलिए परेशानी है। एक भाई है, मगर वह लकवाग्रस्त है, ज्यादा चल-फिर नहीं सकता, बस अपना काम कर लेता है, बहन की शादी के बाद घर के सारे काम का बोझ अकेली माँ पर आ जाएगा यह सोच कर चिन्तित थी।
सच ही तो है लडकियाँ दो घरों का बोझ उठाती हैं,मायका जहाँ कि वो चिंता करती है और ससुराल जिसकी सारी जिम्मेदारी उसके कंधों पर होती है। इन सब बातों से मेरे मन में उसके प्रति सहानुभूति पैदा होने लगी थी, साथ ही मेरी उत्सुकता उसकी ससुराल के बारे में जानने के लिए बढने लगी। बच्चों को भूखा जानकर वो उन्हें खाना खिलाने में व्यस्त हो गई, बीच-बीच में वो खुद भी खा रही थी, अनायास ही मैं उसकी तुलना उस चिडिया से कर बैठी जो अपनी चोंच में पकडा दाना धीरे से अपने बच्चे की चोंच में डाल देती है, माँ की ममता का एक ही रूप होता है चाहे वो पक्षियों की हो या हम इन्सानों की।
खाना खत्म करने के बाद उसने एक छोटा-सा डिब्बा मेरी तरफ बढा दिया मीठा मैं कम ही खाती हूँ इसलिए मैंने मना कर दिया, मगर उसके बार-बार आग्रह करने पर मैंने एक छोटा-सा टुकडा उठा लिया।
हमारी बातचीत का दौर दुबारा शुरू होने को ही था कि ट्रेन अचानक रूक गई, पता चला कि आगे ट्रेक पर कुछ काम चल रहा है इसलिए ट्रेन अभी कुछ देर और यही खडी रहेगी,हम सब के लिए ये परेशानी वाली बात थी, मगर कोई कुछ नहीं कर सकता था, दोनों बच्चों को खिडकी के पास बिठाकर वह उन्हें व्यस्त करने की कोशिश कर रही थी, मगर जैसे जैसे वक्त गुजर रहा था उसके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें बढ रही थीं। अब वह बिल्कुल खामोश थी। मैने उसे तसल्ली देते हुए कहा। आप परेशान न हो हम सब आफ साथ ही है और ट्रेन भी अब बस चलने वाली है।
हाँ, अब तो बस ट्रेन चल ही जाए वरना घर पहुँचने में बहुत देर हो जाएगी। उसने परेशान स्वर में जवाब दिया, साथ ही उसने अपने पति को फोन मिलाया और उन्हें यह बताया कि ट्रेन रूकी हुई है, इसलिए उसे घर पहुँचने में देर हो जाएगी। साथ ही पतिदेव को यह सूचना भी दी कि जब ट्रेन रवाना होगी, तो वह स्वयं ही बता देगी उसी हिसाब से वो स्टेशन पर उसे लिवाने आए अन्यथा उन्हें परेशानी होगी। पूरे दो घण्टे बाद आखिर ट्रेन रवाना हुई इस दौरान वो महिला ज्यादातर खामोश ही रही, पति को फोन करने के बाद उसने बच्चों को खाने का सामान दिया फिर सामान्य हो कर मेरी ओर मुखातिब हुई, अब तो मुझे घर पहुँचने में सात बज जाएँगे, अगर ट्रेन समय से चलती, तो मैं पाँच बजे तक घर पहुँच जाती, हमारे घर में सब खाना जल्दी ही खाते हैं। इसलिए अब तो सीधा रसोई में ही जाऊँगी, मेरे इनको आलू की रसेदार सब्जी बहुत पसंद हैं आज तो वही बनाऊँगी, मम्मीजी पापाजी के लिए दाल और हरी मेथी की भाजी बना दूँगी और बच्चों के लिए दलिया या खिचडी बन जाएगी।
एक ही साँस में उसने मुझे शाम का पूरा मेन्यू बता दिया। आखिर उसका स्टेशन आ गया और हम सब की मदद से वो आराम से उतर गई। मेरा मन अब भी यही सोच रहा था कि सच है नारी कभी ना हारी, अपनी सारी थकान और परेशानी भूलकर उसे शाम के खाने की चिंता है, सबकी पसन्द का खयाल है, वो खुद भी भूखी है ये तो उसने सोचा ही नहीं।
सम्पर्क - H/II/6, सरदार पटेल कॉलोनी,
राजकीय पॉलिटेक्निक कैम्पस,
रेजीडेंसी रोड, जोधपुर-342001
मोबाइल- 97845 79227
रिश्तेदारों की शादी में शरीक होना मुझे हमेशा से कुछ ज्यादा पसन्द नहीं, एक तो किसी चीज की कोई व्यवस्था नहीं होती और दूसरा बिना किसी को कुछ कहें सब बर्दाश्त करना होता है। मगर कहते हैं ना कि दुनियादारी नाम की भी कोई चीज है इस दुनिया में और हम सब उसे ही निभा रहे हैं।
शादी की थकान में ट्रेन की देरी ने मानो आग में घी का काम किया,जब तक ट्रेन आई मेरा मूड पूरी तरह खराब हो चुका था। ट्रेन के आते ही सभी अपनी अपनी सीटों की तरफ चल दिए,सामान व्यवस्थित करने के बाद मैं भी सुस्ताने के लिए अपनी सीट पर पैर फैला कर बैठ गई,आस-पास की सीटों पर गौर किया, तो सभी पर लोग बैठे थे, बस मेरे सामने वाली सीट खाली थी, डिब्बे में लोगों की भीड को देखकर ये साफ था कि हमारे देश में शादी समारोह भी किसी त्यौहार से कम नहीं होते, आजकल की भाषा में इसे फैमिली रियूनियन भी कहा जाता है।
अभी मैंने आँखें बन्द करी ही थी कि छोटे-छोटे बच्चों की आवाज ने मुझे चौंका दिया, एक महिला अपने दो बच्चों के साथ मेरे सामने वाली सीट पर बैठने को तैयार थी, मगर पहले वह अपने साथ लाए सामान को व्यवस्थित करने में जुटी थी, सामान मेरे अन्दाजे से कुछ ज्यादा ही था,दो छोटे बच्चों के साथ इतना सारा सामान किसी को भी परेशान करने के लिए काफी था और उस महिला के चेहरे से परेशानी साफ झलक रही थी कुछ देर बाद वह सीट पर बैठ गई, चेहरे पर थकान और परेशानी के मिले-जुले भाव दिखाई दें रहे थे, बेहद साधारण-सी साडी पहने उस महिला की आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाना मेरे लिए मुश्किल नहीं था।
मैडम, जरा ध्यान रखना बच्चों के साथ ये अकेली है। एक अधेड उम्र की औरत ने मुझे देखते हुए कहा और बच्चों के सिर पर प्यार से हाथ फेर दिया। जी,जरूर मैंने उन्हें आश्वासन दिया। यूँ मुझे बच्चों का साथ हमेशा भाता है, मगर आज चूँकि मेरा मूड खराब था इसलिए मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।
ट्रेन धीरे-धीरे सरकने लगी, तो बच्चों और महिला ने बाहर खडी महिला को देखकर हाथ हिलाना शुरु कर दिया, उस महिला की आँखों की नमी देखकर मैं जान गई कि वो अपने मायके से विदा हो रही हैं, अनजाने ही वो मुझे कुछ अपनी-सी लगी शायद बेटी होने का हमारा दर्द सांझा था।
बातों-बातों में उसने मुझे बताया कि वह अपने मायके अपनी छोटी बहन की शादी में शरीक होने आई थी पतिदेव पहले ही चले गए हैं और वो आज अपनी ससुराल लौट रहीं थी,बहन की शादी की एक-एक घटना वो मुझे पूरे विस्तार से सुना रही थी और ना चाहते हुए भी मैं उस शादी में शामिल हुई जा रही थी, अपनी छोटी बहन के बारे में बताते हुए उसके चेहरे पर एक अनोखी चमक आ गई थी, कितना खूबसूरत होता है दो बहनों का रिश्ता, जितना प्यार और अपनापन इस रिश्ते में है शायद ही किसी और रिश्ते में हो।
हमारी बातें अभी कुछ और चलती, मगर उसका फोन बज उठा,दूसरी तरफ शायद उसके पतिदेव थे क्योंकि वह उन्हें अपने डिब्बे और सीट के बारे में सब बता रही थी। फोन की घण्टी सुनकर अब तक आराम से सो रही उसकी बेटी भी जग गई,वह उसे सम्भालने में व्यस्त हो गई और मैंने अपने साथ लाई पत्रिका के पन्ने पलटना शूरू कर दिया, मगर पता नहीं क्यों मेरा मन उसमें नहीं लगा, तो मैंने उसे बन्द करके एक तरफ रख दिया और आदतन अपने मोबाइल में मैसेज चैक करने लगी। कुछ देर की शांति के बाद उस महिला ने फिर बताना शुरू किया, उसके पिता किसी सरकारी दफ्तर में बाबू हैं अभी कुछ दिनों पहले उनका ट्रांसफर कहीं और हो गया है इसलिए परेशानी है। एक भाई है, मगर वह लकवाग्रस्त है, ज्यादा चल-फिर नहीं सकता, बस अपना काम कर लेता है, बहन की शादी के बाद घर के सारे काम का बोझ अकेली माँ पर आ जाएगा यह सोच कर चिन्तित थी।
सच ही तो है लडकियाँ दो घरों का बोझ उठाती हैं,मायका जहाँ कि वो चिंता करती है और ससुराल जिसकी सारी जिम्मेदारी उसके कंधों पर होती है। इन सब बातों से मेरे मन में उसके प्रति सहानुभूति पैदा होने लगी थी, साथ ही मेरी उत्सुकता उसकी ससुराल के बारे में जानने के लिए बढने लगी। बच्चों को भूखा जानकर वो उन्हें खाना खिलाने में व्यस्त हो गई, बीच-बीच में वो खुद भी खा रही थी, अनायास ही मैं उसकी तुलना उस चिडिया से कर बैठी जो अपनी चोंच में पकडा दाना धीरे से अपने बच्चे की चोंच में डाल देती है, माँ की ममता का एक ही रूप होता है चाहे वो पक्षियों की हो या हम इन्सानों की।
खाना खत्म करने के बाद उसने एक छोटा-सा डिब्बा मेरी तरफ बढा दिया मीठा मैं कम ही खाती हूँ इसलिए मैंने मना कर दिया, मगर उसके बार-बार आग्रह करने पर मैंने एक छोटा-सा टुकडा उठा लिया।
हमारी बातचीत का दौर दुबारा शुरू होने को ही था कि ट्रेन अचानक रूक गई, पता चला कि आगे ट्रेक पर कुछ काम चल रहा है इसलिए ट्रेन अभी कुछ देर और यही खडी रहेगी,हम सब के लिए ये परेशानी वाली बात थी, मगर कोई कुछ नहीं कर सकता था, दोनों बच्चों को खिडकी के पास बिठाकर वह उन्हें व्यस्त करने की कोशिश कर रही थी, मगर जैसे जैसे वक्त गुजर रहा था उसके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें बढ रही थीं। अब वह बिल्कुल खामोश थी। मैने उसे तसल्ली देते हुए कहा। आप परेशान न हो हम सब आफ साथ ही है और ट्रेन भी अब बस चलने वाली है।
हाँ, अब तो बस ट्रेन चल ही जाए वरना घर पहुँचने में बहुत देर हो जाएगी। उसने परेशान स्वर में जवाब दिया, साथ ही उसने अपने पति को फोन मिलाया और उन्हें यह बताया कि ट्रेन रूकी हुई है, इसलिए उसे घर पहुँचने में देर हो जाएगी। साथ ही पतिदेव को यह सूचना भी दी कि जब ट्रेन रवाना होगी, तो वह स्वयं ही बता देगी उसी हिसाब से वो स्टेशन पर उसे लिवाने आए अन्यथा उन्हें परेशानी होगी। पूरे दो घण्टे बाद आखिर ट्रेन रवाना हुई इस दौरान वो महिला ज्यादातर खामोश ही रही, पति को फोन करने के बाद उसने बच्चों को खाने का सामान दिया फिर सामान्य हो कर मेरी ओर मुखातिब हुई, अब तो मुझे घर पहुँचने में सात बज जाएँगे, अगर ट्रेन समय से चलती, तो मैं पाँच बजे तक घर पहुँच जाती, हमारे घर में सब खाना जल्दी ही खाते हैं। इसलिए अब तो सीधा रसोई में ही जाऊँगी, मेरे इनको आलू की रसेदार सब्जी बहुत पसंद हैं आज तो वही बनाऊँगी, मम्मीजी पापाजी के लिए दाल और हरी मेथी की भाजी बना दूँगी और बच्चों के लिए दलिया या खिचडी बन जाएगी।
एक ही साँस में उसने मुझे शाम का पूरा मेन्यू बता दिया। आखिर उसका स्टेशन आ गया और हम सब की मदद से वो आराम से उतर गई। मेरा मन अब भी यही सोच रहा था कि सच है नारी कभी ना हारी, अपनी सारी थकान और परेशानी भूलकर उसे शाम के खाने की चिंता है, सबकी पसन्द का खयाल है, वो खुद भी भूखी है ये तो उसने सोचा ही नहीं।
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