अमिताभ चौधरी कविताएँ
अमिताभ चौधरी
1. समय के क्षीण होने की आहट है
समय के क्षीण होने की आहट है
अहरह-
अनकही बातों की पुकार जैसे
बेखटका :
विरुद्धों के आत्मीय द्वन्द्व
की एक पुरानी कथा है-बहुत पुरानी कथा।
एक बूढे आदमी की रात भर बात कहने की भाषा में
एक ही वर्ण की कितनी सारी ध्वनियाँ हैं
जिन्हें दूर किया गया कि वे निकट हैं इसलिए
मैं कल्पना करता हूँ!-व कविता लिखता हूँ!-
मैं वह पृष्ठ संगृहीत करता हूँ
जिन पर तुम्हारा नाम लिखना स्वयं को पुकारना है।
2. बहुत विकट समय है
बहुत विकट समय है।
धुँध जैसी रोशनी में
अमूर्त देह का पिशाच हाथ लगा है
कि
अपना मुख स्पर्श करने का साहस दिखा,
व्यक्ति!
व्यक्ति अपना मुख स्पर्श कर रहा है
कि
बहुत विकट समय है!
3. झील का एक दर्पण है
झील का एक दर्पण है
मिट्टी के कटाव का व्यूह :
यदि तुम्हारे अपलक रह जाने में
मेरी प्यासें भरी हैं
इसलिए,
मैं तुम्हें कोहरे में दिखाई दे रहा हूँ;
तो कहो : इस पृथ्वी पर
आँखें खोलकर रखने से उजाले कटते हैं!
प्रतिबिम्ब देखने से चेहरे सन्दिग्ध होते हैं!
देह चूमकर
साँस लेने वाले हवा हो जाते हैं, प्राण!
4. मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा
घडी के काँटे अहरह
लौटते हैं
एक-एक अंक पर-
किन्तु, समय नहीं लौटता।
घडी के भार से गिरी उस भीत पर
पुनः वह घर नहीं बना
इसलिए,
मैं कहता हूँ : जब तक मैं रास्ते पर हूँ;
यह पृथ्वी घडी की भाँति गोल घूमती रहेगी।-
और,
मैं समय के लौटने की ओर चलता रहूँगा....
जैसे, मुझे किसी की प्रतीक्षा नहीं!-
.. ऐसे,
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा।
सम्पर्क - गाँव- थिरपाली छोटी,
पोस्ट- थिरपाली बडी
तहसील- राजगढ
जिला- चुरू (राज.) 331305
मेल : amitabhchauçharyx|z@gmail.com
समय के क्षीण होने की आहट है
अहरह-
अनकही बातों की पुकार जैसे
बेखटका :
विरुद्धों के आत्मीय द्वन्द्व
की एक पुरानी कथा है-बहुत पुरानी कथा।
एक बूढे आदमी की रात भर बात कहने की भाषा में
एक ही वर्ण की कितनी सारी ध्वनियाँ हैं
जिन्हें दूर किया गया कि वे निकट हैं इसलिए
मैं कल्पना करता हूँ!-व कविता लिखता हूँ!-
मैं वह पृष्ठ संगृहीत करता हूँ
जिन पर तुम्हारा नाम लिखना स्वयं को पुकारना है।
2. बहुत विकट समय है
बहुत विकट समय है।
धुँध जैसी रोशनी में
अमूर्त देह का पिशाच हाथ लगा है
कि
अपना मुख स्पर्श करने का साहस दिखा,
व्यक्ति!
व्यक्ति अपना मुख स्पर्श कर रहा है
कि
बहुत विकट समय है!
3. झील का एक दर्पण है
झील का एक दर्पण है
मिट्टी के कटाव का व्यूह :
यदि तुम्हारे अपलक रह जाने में
मेरी प्यासें भरी हैं
इसलिए,
मैं तुम्हें कोहरे में दिखाई दे रहा हूँ;
तो कहो : इस पृथ्वी पर
आँखें खोलकर रखने से उजाले कटते हैं!
प्रतिबिम्ब देखने से चेहरे सन्दिग्ध होते हैं!
देह चूमकर
साँस लेने वाले हवा हो जाते हैं, प्राण!
4. मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा
घडी के काँटे अहरह
लौटते हैं
एक-एक अंक पर-
किन्तु, समय नहीं लौटता।
घडी के भार से गिरी उस भीत पर
पुनः वह घर नहीं बना
इसलिए,
मैं कहता हूँ : जब तक मैं रास्ते पर हूँ;
यह पृथ्वी घडी की भाँति गोल घूमती रहेगी।-
और,
मैं समय के लौटने की ओर चलता रहूँगा....
जैसे, मुझे किसी की प्रतीक्षा नहीं!-
.. ऐसे,
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा।
सम्पर्क - गाँव- थिरपाली छोटी,
पोस्ट- थिरपाली बडी
तहसील- राजगढ
जिला- चुरू (राज.) 331305
मेल : amitabhchauçharyx|z@gmail.com