जीवन
रोहित ठाकुर
एक साईकिल पर सवार आदमी का सिर
आकाश से टकराता है
और बारिश होती है
उसकी बेटी ऐसा ही सोचती है
वह आदमी सोचता है कि उसकी बेटी के
नीले रंग की स्कूल-डत्र्ेस की
परछाई से
आकाश नीला दिखता है
बरतन मोजती औरत सोचती है
मेजे हुए बरतन की तरह
साफ हो हर
मनुष्य का क्तदय
एक चिडया पेड को अपना मानकर
सुनाती है दुःख
एक सूखा पाा हवा में चक्कर लगाता है
इसी तरह चलता है जीवन का व्यापार।।
आकाश से टकराता है
और बारिश होती है
उसकी बेटी ऐसा ही सोचती है
वह आदमी सोचता है कि उसकी बेटी के
नीले रंग की स्कूल-डत्र्ेस की
परछाई से
आकाश नीला दिखता है
बरतन मोजती औरत सोचती है
मेजे हुए बरतन की तरह
साफ हो हर
मनुष्य का क्तदय
एक चिडया पेड को अपना मानकर
सुनाती है दुःख
एक सूखा पाा हवा में चक्कर लगाता है
इसी तरह चलता है जीवन का व्यापार।।