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मधुमती के मार्च अंक को पढकर

भारत यायावर
मधुमती के मार्च अंक के बारे में कुछ कहने के पहले जनवरी, 2021 में प्रकाशित हिन्दी के वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी की पाँच कविताएँ पढकर संवेदनशील मन में बेचैनी भर गई । कोरोना काल में मृत्यु के आगोश में कितने हमारे मित्र-परिजन समा गए ! एक व्याकुलता से भरा कवि- हृदय मृत्यु की पगध्वनि सुन नहीं पा रहा, किन्तु एहसास गहरा है कि वह पास है। अपने समय के अनुकूल और अनुरूप न होने की पीडा है । लगातार घर में ही रहने से घर के बाहर की हलचल में शरीक न हो पाने की थकान है। उम्र के इस पायदान पर आकर मृत्यु-बोध का होना स्वाभाविक है ।
अशोक वाजपेयी जी हमारे समय के ऐसे कवि हैं, जिन्होंने कवियों का सम्मान किया है । जिन्होंने अनेक विरोध झेल कर कविता के लिए जगह बनाई है । कथाकारों के गद्य में भी कविता की खोज की है । विचारों के हमले सहे हैं। नकली क्रांतिकारी मुखौटे लगाकर लोग शोर करते रहे और वे चुपचाप अपना काम करते रहे । उनकी पीडा उनकी इस पंक्ति में कैसे समाहित होकर बहुत-कुछ कह रही है -
मैं तो अपने ही देश में आदमी होने से वंचित किया जा रहा हूँ
मधुमती हिन्दी की एक श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका है, जिसके संपादक ब्रज रतन जोशी की समझदारी और साहित्यिक निष्ठा वंदनीय है। अभी मधुमती के मार्च अंक को पढकर उठा हूँ, तो एक नवीन सर्जना से गुजरने के बाद कुछ कहने को मन हो रहा है । इस अंक में राजस्थान पर दुर्लभ प्रसंगों का उद्घाटन है और शेष अंक महान कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु पर प्रकाशित विभिन्न सामग्री है।
ब्रज रतन जोशी की सम्पादकीय का शीर्षक है-रेणु : विद्रोही संत नया और बेहद सारगर्भित है। किसी रचनाकार का संत हो जाना बेहद मुश्किल है। दूसरी ओर विद्रोही होने के लिए उसे बनी - बनायी परिपाटियों को छोडकर आगे बढते रहना जरूरी है । रेणु के सन्दर्भ में यह एक नया आकलन है।
रेणु की जन्मशती पर विशेष रूप से प्रकाशित ये लेख बेहद महत्त्वपूर्ण हैं । इनके अलावा नेमिचन्द जैन पर वरिष्ठ लेखक नन्दकिशोर आचार्य का एक महत्त्वपूर्ण लेख है।
मधुमती राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका है और उदयपुर से निकलती है, लेकिन इसने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान एक श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका के रूप में स्थापित कर ली है। जोशी जी की सूझ बूझ और समर्पित भाव से संपादन करने का मैं अभिनन्दन करता हूँ ।

- भारत यायावर