मैंग्रोव वन
रश्मि शर्मा
लगातार बारिश। सुबह से नम मौसम और दोपहर के बाद से झमाझम। मैं खिडकी से सटी देखती हूँ बारिश की बूँदों को। टिप-टिप की लयात्मक आवाज मन में सोई हसरत को हवा देती है। एक दर्द की लकीर सीने से उठ कर आँखें में मचलने लगी हैं।
हवा के ठंडे झोंके से घबराकर गरम कपडे की तलाश में आलमीरा खोलती हूँ। अभी सर्दियों ने दस्तक नहीं दी है मगर हवा बर्फीली हो गई। ये वक्त नहीं है गरम कपडों का, मगर तन ने सिहरते हुए कहा - मुझे जरूरत है।
आलमीरे के निचले खाने में मुझे अपनी वही फिरोजी शॉल दिखी। तुम्हारा पसंदीदा रंग। हाथ बढाकर उठा लिया। यूं सहलाया जैसे तुम्हारी बाहें हो, जहाँ सुकून के कुछ पल मिले हैं मुझे। अब तुम्हारी यादों के पश्मीने में ढकी खुद को पुरसुकून पा रही हूँ। बाहर अब भी बरसात हो रही है।
घर के नीचे एक नन्हा-सा पिल्ला मारे ठंड के काँय-काँय कर रहा है। झाँककर देखती हूँ उसे। जी चाहता है बाहों में समेट लाऊँ, उसे भी अपनी शॉल की गर्मी दे दूँ। भीगकर बीमार हो जाएगा बिचारा। तभी उसकी माँ आकर उसे सटा लेती है खुद से। मुझे बहुत चैन मिलता है देखकर।
मैं अकेली नहीं हूँ, तन्हा भी नहीं। शॉल खरीदते वक्त दुकानदार ने कहा था- जरा भी ठंड महसूस नहीं होगी इसे ओढकर। तब नहीं पता था यह मेरे लिए सबसे कीमती चीज हो जाएगी। वाकई ठंड महसूस नहीं हुई थी, उस रोज भी और आज भी।
खिडकी के बाहर झाँका फिर। लगातार बारिश। ये मुंबई बरसात में कहर ढाने लगी है। जब मर्जी, जितनी मर्जी बरस पडती है। कब किस वक्त कहाँ फँस जाए कोई, अनुमान नहीं लगा सकता। और ऐसी बारिशों में तन्हाई इस कदर घेरती है कि अपने ही मन को संभालने में सारी उर्जा खर्च हो जाती है। बारिशें तन्हाई लाती है, एक उम्र लग गई इस बात को समझने में।
ऐसा नहीं कि मुझे बरसात प्रिय नहीं। बारिश में बूँदों संग अठखेलियाँ करना मेरा प्रिय खेल रहा था, तब तक, जब तक प्यार नहीं हुआ था। इस प्यार ने मुझसे मेरा प्रिय मौसम छीन लिया। अब उमडते-घुमडते काले बादल सुकून की बारिश के बजाय यादों के चऋवात लाते हैं, जिसमें फंसकर सब कुछ छितरा-सा जाता है।
कुछ लोग करीब से ऐसे गुजर जाते हैं, कि कभी राब्ता ही न रहा हो कोई। ठहरने वाले कडी धूप में जलते रहते हैं, सानिध्य के चंद पलों को सीने में छुपाए बरस गुजार देते हैं, इस इंतजार में कि कभी किसी याद की उंगली थाम वो आएगा, जिसने वादा नहीं किया कभी लौटने का, मगर शायद.....
बरस..बस चंद बरस ही तो गुजरे हैं। चाहो तो मेरी आँखों में पढ लो उस बरसात की बात, मुंबई की बरसात और उम्र भर न भुला सकूं ऐसी वो रात।
आठवें मंजिल पर है फ्लैट और वो मेरा जन्मदिन था, आठ अगस्त। दोस्तों ने सेलिब्रेशन के लिए रेस्टोरेंट न चुनकर फ्लैट चुना। केक उनकी तरफ से और खाना के लिए जोमेटौ या स्वीगी से जो पसंद होगा, सब मंगवा लिया जाएगा, यह आइडिया मेरी फ्लैटमेट स्वाति का था, जिसे नेहा, सुकांत, कोमल और अरिंदम ने स्वीकृति दी थी।
अरिंदम, मेरा कुलीग ..। बाकी सभी पुराने दोस्त थे, जिनसे मैंने ही मिलाया था अरिंदम को यह कहकर, कि बहुत अच्छा है, अकेला है, नया है शहर में और इसे दोस्तों की जरूरत है। हाँ, यह नहीं कहा था उनसे, कि इसे दोस्तों की जरूरत है, और मुझे इसकी। दिल्ली से मुंबई आया था कुछ गम भुलाने और आते ही मेरी आँखों में उतर गया। कोई इंसान ऐसा भी होता है, जिसे देखते ही दिल के तार झनझना जाते हैं, बिना यह जाने कि वह कौन है, किसका है, कभी तुम्हारा हो भी पाएगा या नहीं। फर्स्ट साइट लव शायद इसे ही कहते हैं।
तुम्हें जानकर भी नहीं जाना था, और तुम्हें तो कुछ जानना ही नहीं था...
बरसात के साथ-साथ पार्टी पूरे शबाब में थी। पिज्जा, बर्गर, चिली के साथ रम और रेडवाइन। आजकल पार्टी का मजा ड्रिंक्स के बिना अधूरा है, ऐसा अधिकतर को लगता है, सिवा मेरे। म्यूजिक की धुन में सब थिरक रहे थे। तुम्हारे साथ होने से खुशी दुगुनी हो जाती है और यह खुशी मेरी आँखों से छलकती भी है। तुम्हें महसूस हो न हो, स्वाति को जरूर महसूस होता है। मैंने देखा, वो ज्यादा ख्याल रख रही थी तुम्हारा, शायद मेरी पसंद की खातिर, मेरे प्रिय थे तुम, इस खातिर।
रात के बारह बज गए। एक-एक करके सभी निकल गए अपने घर को। मैं और स्वाति बिखरे समान समेटने में जुटे थे, ताकि सुबह देर से उठने पर भी घर सँवारने के चक्कर में ऑफिस के लिए देर नहीं हो जाए। तभी कॉलबेल बज उठा। स्वाति और मैं सवालिया निगाहों एक दूसरे का चेहरा देखने लगे, कि इस वक्त कौन हो सकता है
तुम थे। हमारे हैरतजदा चेहरे देखकर बोले - टीवी ऑन करो। न्यूज में आ रहा था कि खराब मौसम की वजह से कई रेल लाइनों पर पानी भर गया है जिसके कारण ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं, जिनमें सीएसटी से ठाणे जाने वाली ट्रेन भी बंद कर दी गई है। मौसम विभाग ने दो दिनों तक भारी बारिश की चेतावनी दी है। आज शाम समुद्र में हाई टाइड करीब पाँच मीटर थी। दो दिनों तक स्कूल-कॉलेज भी बंद रहेंगे। मछुआरों को समुद्र से दूर रहने की हिदायत दी जा रही है।
मजबूरी है लडकियों, आज की रात मुझे यहीं ठहरना होगा। कल सुबह ही निकल पाऊँगा सडक के रास्ते। कोई एतराज।
नहीं.. हमदोनों ने एक साथ कहा। मेरे ना कहने का सवाल ही नहीं था। यह संयोग मेरे लिए सुखद था। जिसके सामीप्य की चाहत पहले ही दिन से मेरे दिल में थी, वो आज पूरी की पूरी रात हमारे साथ गुजारने वाला था। मैंने मन ही मन खुद से कहा - आज अनायास मिले मौके को जाया नहीं होने दूँगी। मैं खुलकर तुमसे अपने दिल की बात बता सकती हूँ । तुम्हारे बारे में इतना तो अनुमान था ही कि तुम किसी से प्यार करते थे। यह थे मेरे लिए संतोष का सबब है। कोई कब तक स्मृतियों के सागर में डूबता-उतराता रहेगा। एक न एक दिन थक कर किनारे लगेगा, और वो दिन मेरे जीवन में नए प्रभात का दिन होगा। मैं उस दिन का इंतजार करने के लिए तैयार थी।
अब सोफे पर हम तीन थे। बातचीत का सिलसिला मौसम और सडकों से होते हुए ऑफिस से सिनेमा तक चल निकला। स्वाति तुमसे तुम्हारा अतीत कुरेदने की कोशिश कर रही थी और तुम अपने दिल के कपाट सख्ती से बंद कर मौसम के आशिकाना होने के बाद उसके भयावह स्वरूप की चर्चा कर रहे थे ।
मैं तो रूक गया आज, मेरे पास छत है मगर जो लोग बीच रास्ते में फंसे रह गए, उनका क्या होगा तुम्हारी चिंता जायज थी। मुझे अच्छा लगा कि तुम्हारे अंदर दूसरों के लिए दया है। हम सब चिंतित हो उठे। बाहर दिख रहा था कि सडकें समंदर बन गई हों जैसे। यह बारिश नहीं, कुदरत का कहर है जिससे झुग्गी-झोपडी वालों की जान पर बन आएगी।
वातावरण संजीदा हो गया था। हम कल के मंजर की कल्पना कर आशंकित थे, कि जाने क्या-क्या खबर सुनने को मिले। आसमान से आफत क्यों बरस रही है। ईश्वर..इतने पानी की जरूरत नहीं हम मुंबई वालों को। मन ही मन हम सबने प्रार्थना की।
कुछ देर के बाद कॉफी की तलब हुई। मैंने ड्रिंक्स में दोस्तों का साथ बस दो घूंट का दिया था। मुझे तो असली नशा कॉफी में ही आता है। स्वाति ने हाथ खडे करते हुए कहा कि उसे कुछ नहीं चाहिए, नींद आ रही है। मुझे जब सोना हो, उसके कमरे में आ जाऊँ, वो दरवाजा लॉक नहीं कर रही। एक पल को सोचा कि उसे सच में नींद आ रही है या वो हमें स्पेस देना चाह रही थी। जो भी हो, मुझे खुशी ही हुई स्वाति की इस समझदारी पर। जब तक जागेंगे, ठीक है, फिर अरिंदम मेरे कमरे में सो रहेगा, यह तय हो चुका था हमारे बीच।
स्वाति गुडनाइट के बाद अपने कमरे में चली गई और मैं तुम्हारे हाँ बोलने पर किचन में कॉफी बनाने। किचन से लौटी तो देखा तुम्हारे हाथ में ड्रिंक थी और तुम खिडकी से बाहर झाँकते हुए गुनगुना रहे थे शेराज सागर की गजल.....
मैं तेरी रात के पिछले पहर का लमहा हूँ
जो हो सके तो कभी जाग के गुजार मुझे
तुम्हें पता नहीं चला कि ठीक पीछे मैं खडी हूँ। चौंके मेरी आवाज से - काश! कोई मेरे लिए ये सोचे, ये कहे मैं तो किसी और के लिए सोच रहा हूँ....
तुम्हारी बात इग्नोर की मैंने और कहा - जब ड्रिंक ही लेना था, तो कॉफी के लिए हाँ क्यों कहा
मेरे उलाहने पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी तुमने।
दस मिनट के एकांत ने तुम्हारा मूड बदल दिया था। टीवी की बहस और मौसम के कहर से निकलकर तुम पत्तों पर ठहरती और गिरती बारिश की बूँदों में अपना साम्य ढूँढने लगे थे जैसे। मैंने देखा, वही दर्दीली मुस्कान तुम्हारे लबों पर तैर रही है, जो अक्सर परेशान करती है मुझे। सबके बीच भी तुम कभी-कभी इतने खोये महसूस होते हो कि तुम्हारे लबों से निकलने वाली बातें और आँखों में उठने वाले भाव सदा भ्रमित करते हैं मुझे कि तुम कह क्या रहे हो और सोच क्या रहे हो।
तो मोहब्बत में डूबे हो उदासी की दीवार तोडकर उस तह तक पहुँचने का रास्ता तलाश रही थी मैं, जिसे पाना अपना लक्ष्य मान लिया था।
मुझे तो छुआ भी नहीं मोहब्बत ने लरज गई जुबां यह कहते हुए, जैसे किसी पाकीजा चाहत को जमीं पर उतारने के लिए हजार मन्नते माँगे कोई और वह दुआ नाकबूल हो जाए।
जो जी रहे जब से किसी का नाम लिए, वो क्या है
वो प्यास है बस
तो.. मोहब्बत क्या होती है
पानी
वो पानी, जो पूरी मुंबई को बहा ले जा रही है, उसी पानी की चाहत है तुम्हें
हाथ बाहर निकाल कुछ बूँदे समेटी हथेलियों में और तुम्हारी ओर उछाल दिया। चेहरे पर पडी बूँदों को तेजी से पोंछ डाला था तुमने। मेरी शरारत व्यर्थ चली गई। तुम्हारे चेहरे की उदासी और गहरी होने लगी जैसे साँझ को सूरज ढलते वक्त पीछे से कालिमा दौडती चली आती है और समूची पृथ्वी को अँधेरे की गिरफ्त में ले लेती है।
इतनी उदासी क्यों हैं तुम्हारा दर्द मेरी आँखों में उतर आया था और बेचैन हो गई थी मैं।
प्यार केवल दर्द देता है भारती, मत पडना इस प्यार में कभी। आँसू, दुख और तन्हाई के सिवा कुछ हासिल नहीं होता इससे।
कोई सोचकर किसी से प्यार करता है क्या कैसे कहूँ तुमसे अरिंदम, यह अपने बस में नहीं। मन में कहा मगर यह बात तुमसे कहना मुनासिब न था। मेरे दिल में तुम्हारे लिए भावनाओं का आकाश है, क्या यही कम है कि तुम मुझे दोस्त समझते हो। काश ! कि ये निगाहें मुझ पर ही उठती और रूकतीं। कई बार चाहा कि दिल की चाहत को तुमसे साझा कर दूँ, मगर तुम्हारे दिल पर तो किसी और का नाम चस्पां है । कौन है वह खुशनसीब अनदेखे असितत्व पर ही ईष्या दग्ध हो उठा था मन। शायद इसलिए कि बातों ही बातों में अहसास दिलाया था तुमने कि जो गुजर चुका वो आज भी है और कल भी कुछ नहीं बदलने वाला। तुम किसी के प्यार में थे नहीं, हो और रहोगे सदा।
ऐसे मौसम बहुत तंग करते हैं मुझे। उफ...ये बारिश क्यों होती है। तन्हाई और बढ जाती है ऐसे में। जी करता है किसी के आगोश में सिमट जाऊं। मुझसे नहीं खुद से कह रहे थे तुम। ऐसे तो संयत ही देखा है हमेशा तुम्हें। हाथ में रम की जो खाली गिलास है, शायद यह उसी का असर है।
ऐसे चुप क्यों अरिंदम..बात करो मुझसे यह कहते वक्त जी चाहा खिडकी से बाहर झाँकते तुम्हारे चेहरे को अपनी ओर खींचकर मासूम बच्चे की तरह सीने में भींच लूं।
उसकी बहुत याद आ रही है भारती। जी कर रहा किसी के कांधे पर सर रखकर रो दूँ उसकी याद में।
रो लो, इसके लिए कांधा क्यों। आदत हो जाती है फिर। किसी पर निर्भर होना अच्छी बात नहीं।
जुबां से निकले शब्द थे मगर दिल चाह रहा था कि सीने में छुपा लूँ तुम्हारा चेहरा और सारे गम सोख लूँ। क्यों हो अरिंदम तुम मेरे होते हुए इतने तन्हा। निकल आओ उन गलियों से बाहर, जहाँ से एक बार गुजर चुके हो। नए रास्ते पर चलो। अतीत को सीने से चिपटाए हुए न जी पाओगे न मर पाओगे। मगर दिल की बातें तुमसे कह पाना कितना मुशिकल है मेरे लिए, यह मैं ही जानती थी।
और कितना तन्हा करूँ खुद को किसी भी बात से दिल नहीं बहलता अब।
रो पडने की कगार से खींचकर वापस लाना चाहा था तुम्हें।अचानक क्या हुआ कि इस कदर टूटने लगे हो तुम। यह एकांत और बरसात। जाने कौन- सी यादे हैं जो सीने में दबे जख्म से रिस रही है। तुम टूटोगे तो मैं भी टूट जाऊंगी अरिंदम, शायद इसका अनुमान नहीं तुम्हें। मगर यह आत्मालाप तुम तक नहीं पहुँचने दिया मैंने।
खुद के साथी बनो ...कोई साथ नहीं होता हमेशा किसी के लिए तुम्हारे लिए तुमको ही समझाना चाहा क्योंकि यह खुद को समझाने से आसान लगा था उस वक्त।
इस बात का जवाब तुमने अपने शब्दों में नहीं, एक अनसुने शेर से दिया। शेर-ओ-शायरी से बेइंतहा मोहब्बत थी तुम्हें - मेरा गुस्सा ही बढाएंगे दिलासे तेरे
मुझको सीने से लगा यार, मुझे रोना है (विक्रम बैरागी)
यह आमंत्रण है या महज शेर, तय करना मुशिकल हो रहा था मेरे लिए। तुमने आज ज्यादा ड्रिंक ले ली है या मौसम ने गम के तराने छेड दिए हैं, या फिर जागती रात का असर है कि वह बार-बार बारिश के पार उन यादों को न्योत रहा है जिसने जख्मी कर रखा है एक जमाने से तुम्हें।
क्यों रोते हो इतना.. बेवफा को भुला देना बेहतर होता है अरिंदम। इस तरह मत घुलो।
हम जैसे रोते रहने वालों से ही ये दुनिया खूबसूरत है, जरा गौर करो तो फिक्क से हँस पडे थे फिर तुम। मैं आश्चर्य से देखती रह गई कि आँसू और मुस्कान को कैसे साथ-साथ साध रखा है तुमने।
किसकी जिंदगी में दुख नहीं। हाँ, तुम्हारी तरह उसे सीने से लगाकर कोई नहीं घूमता।
हाँ...सबकी जर्नी में बहुत कुछ कॉमन होता है, पर सब कुछ एक सा नहीं होता। दैट्स लाइफ आफ्टरऑल। हर पहेली हम नहीं सुलझा सकते।
जिसके बिना जिया नहीं जा रहा, उसे हर जतन करके रोकना चाहिए था। मेरी आवाज तल्ख थी, मुझे अहसास हुआ इसका। शायद उस अनजाने का बार-बार जिक्र आना मुझे आहत कर रहा था। मेरे आसपास तुम थे और किसी तीसरे की उपसिथति बहुत खटक रही थी मुझे।
सन्नाटा घिर गया फिर। एकदम चुप थे तुम। ऐसी चुप्पी कि लगे सदियों से नदी के पाट पर दो लोग खडे हैं इस इंतजार में कि कोई तो आवाज दे पहले। दिल ने कहा - काश ! दुखों की पोटली खोल दे अरिंदम तो उसके कुछ दुख अपने सीने में छुपा लूं। टीसते जख्म को दबा कर वो कीलें निकाल दूँ, जो बार-बार घायल करती है मेरे अरिंदम को। उसका कुछ भार हल्का कर दूँ, कुछ बाँट लूँ। लोग प्रेम में बदल जाते हैं, यह तो सुना था, तुम्हें देख भी रही और अपने अंदर भी वही बदलाव महसूस कर डरने लगी हूँ। तुम्हारी उदासी और खींचती है मुझे।
सन्नाटे को चीरती-सी आवाज निकली.. बहुत याद आ रही किसी की..आज तो बहुत ही ज्यादा ।
मेरे सामने तो मत ही कहो प्लीज, मुझे चिढ होती है वाकई मुझे चिढ होने लगी उस लडकी के जिक्र से जिसका प्रभाव इतना असरदार था कि अपने न होने के बाद भी तुम्हें प्रेम के शिकजें में इस तरह जकड रखा है कि उसके सिवा कुछ और देख नहीं पा रहे थे तुम।
तो किससे कहूँ, क्या कहूँ फिर
अरिंदम, ऐसे दिल जलाओगे अपना तो कैसे काम चलेगा। बीती बात पर मिट्टी डालो
लो...डाल दिया, अब मुस्कराये थे तुम।
मैं हूँ न.. कहकर सकपका गई मैं।
तुम भी तो एक दिन चली जाओगी। अपने रौ में बोलते रहे तुम। फिर तुम याद आने लगोगी, तो और कहाँ जाऊँगा। कहाँ से इतनी मिट्टी लाऊँगा। सब ऐसे ही होते हैं। कोई ठहरता नहीं मेरे पास, मेरे सिवा।
मैं कहीं नहीं जाऊँगी मेरी आवाज दृढ थी।
मेरा ठिकाना नहीं, मैं तो आवारा हूँ, टिकूँगा कब तक ये नहीं पता। दिल्ली से मुंबई, यहाँ जी नहीं लगा तो कहीं और...
नहीं जाने दूँगी तुमको भी कहीं।
इतने करीब मत आओ, इतनी केयर मत करो भारती। मेरे जीवन मे दुख और आँसू के सिवा कुछ नहीं। मैं अधूरा इंसान, मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं।
आह में लिपटी आवाज सीना चीरने लगी मेरा। तुम समझते हो मुझे, ऐसा लगा है कई बार। तुमने देखा तो होगा प्यार छलकते हुए इन आँखों से। आखिर तुमने भी तो किसी को प्यार किया है। प्रेम कहाँ छुपता है। मैं खुद से बातें कर रही थी और तुम कहते जा रहे थे -
उसे सब कुछ दिया था, अपना वक्त, अपना प्यार। जीवन की हर खुशी देना चाहता था उसको। अब तो कई साल गुजर गए। सब धुआँ हो गया। खालीपन है सीने में और है इंतजार। उसका नहीं, मौत का। उसे तो अपने ही हाथों विदा कर दिया था। पापा और उसमें, किसी एक को चुनना था। फर्ज ने प्रेम की कुर्बानी ले ली। आज देखो, न पापा मेरे साथ हैं, न वो। तब क्या जानता था कि वो मेरी जिंदगी है, जिसे अपने ही हाथों विदा कर दिया मैंने। खैर...दैटस लाइफ..द थिंग्स शुड गो ऑन।
तुम खुद को संभालने का भी जतन कर रहे थे।
आओ, आज तुम्हें सब बता दूँ..., सारी वहशत, पागलपन ...तुम समझोगी न मुझे ! आओ भारती, करीब बैठो।
मैं तुम्हारे करीब चली गई। कमरे में दीवान पर टेक लगाकर बैठे थे तुम। तकिया पीठ के नीचे दबा था। सामने की खिडकियां खुली थीं, जिससे बारिश की छींटे अंदर आ रही थी। कभी-कभी बदन को छूती वो छींटे तो अनबुझी सी खुशी महसूस होती। सुहाना मौसम और तुम्हारा साथ। यह मेरे लिए स्वप्न के समान था कि तुम मेरे करीब बैठे हो। इतने करीब कि चाहूँ तो हाथ बढाकर छूँ लूँ। सामने बैठकर एकटक देखने लगी थी तुम्हारा चेहरा, एक ऐसा चेहरा जो बेहद मासूम था मगर जिसकी आँखों में सिमटा असीम दर्द आज बह निकलने को आमदा था।
मैंने अपने बालों को क्लचर से आजाद कर दिया। पीछे से आती हवा उनको आवारा बना कर बिखरा रही थी। मैं प्रतीक्षा में थी कि तुम कुछ और कहो मुझसे।
तुम देख रहे थे मुझे, एकटक, जैसे किसी की निगाहें अजनबी चेहरे पर टिक जाती है बार-बार।
खूबसूरत हो तुम। पहली बार यह कहा था तुमने ।
जी चाहा वक्त को थाम लूँ। थाम लूँ तुम्हारी निगाहों को अपने ऊपर, कि लौट न पाए वो वहाँ, जहाँ जाकर तुम्हारी आत्मा तडपती है। पूरी दुनिया से अदृश्य हो जाऊँ। तुम्हारे लब बार-बार दुहराएँ....खूबसूरत हो तुम और इस सुंदरता के पाश में बँध जाओ।
मगर तुम डूबे नहीं मुझमें, बताने लगे-
उससे जब मिला था अंतिम बार, रोया था जी भर के। हम दोनों घंटो रोते रहे, एक-दूसरे को चुप कराते रहे। जब भी मिले, एक फासले से मिले थे। उसे मेरी ही होना है, यह महसूस करता था मैं। उसकी सुरक्षा और उसकी खुशी, इसके अलावा कुछ नहीं चाहा था मैंने। उदास आवाज में यादों का सफर तय कर रहे थे तुम और आज इस सफर में मैं भी साथ थी ।
वो जा रही थी, सदा के लिए। मैंने रोते हुए अंतिम ख्वाहिश जताई - छू लूँ एक बार तुमको, किसी और के होने के पहले।
छू लो..कहकर हाथ बढा दिया उसने।
एक पल को ठिठका मैं, हँसा- मुझे चूमना है आज तुम्हें। गुनाह है तो गुनाह सही...हर सजा मंजूर। दो इजाजत तो चूम लूँ....
रो पडे थे तुम...नहीं चूम पाया उसे। बस उसका हाथ थामे रोता रहा। यह ख्वाहिश आज भी जलाती है मुझे। जिसे चाहा, उसके स्पर्श को संजो लूँ, इतनी भी मोहलत किस्मत ने नहीं दी मुझे।
मेरे हाथ अनायास तुम्हारी हथेली पर कस गये। मेरा मन उस आवाज की हथेली थाम कर चलने लगा। रूहानियत भरी काँपती आवाज बारिश की बूँदों के साथ लहरा रही थी। हवा में लहराते बालों के पीछे से झाँकती उन आँखों में मैं अपना अक्स ढूंढने लगी। जैसे वो उसकी न होकर मेरी ख्वाहिश को शब्द दे रहा है। इस अहसास से मेरी आँखें मुँद गई कि मेरी हथेलियों को चूम रहा है अरिंदम। तसव्वुर में धीमी सी सरगोशी हुई। मेरे कान की लौ के पास फुसफुसाकर बोलने लगे - आओ छू के देखूँ अंतिम बार...एक बार तो चूम लूँ तुम्हारी घनेरी पलकें जिनमें मेरे सपने सजा करते थे। कल मेरा कोई अखितयार नहीं होगा इस पर, मगर आज तो तुम मेरी हो....
बारिश गिरती रही रात भर, दर्द उतरता रहा। आँखों ने देखा, अनूठे स्वाद को जिह्वा में घुलते हुए। हवाओं ने कानों में पहुँचाए लफ्जों के शरारे। प्यार रेशे-रेशे में उतरने लगा। अरिंदम के दर्द ने रास्ता बदला, शिराओं से होते हुए पैरों को चूम, ठहर गया। उसकी अधमुँदी आँखों में बिछोह के पहले का प्रेम पूरी शिद्दत से मचल रहा था और मैं अपनी चाहत को फलित होते देख रही थी।
खोने के डर से परे रात चंचल थी। जिंदगी ने दर्द को धकेल के खिडकी के पार उतार दिया। बाहर से आती हल्की पीली रौशनी के साए में चमकता रहा कंचन-सा बदन, जैसे बर्फ की चोटियों में धूप ठहरती है। कोई दर्द पीता रहा, कोई लुभाता रहा। जीवन का भरम ऐसा कि रात गाती रही, बारिश गिरती रही। भीगते शहर में, डूबते दो लोग, जिनके बह जाने की सन्हा कहीं दर्ज नहीं होगी।
उलझे बालों पर कंघी करती रही उंगलियाँ, फँसती-निकलती रही जिंदगी। हम सुलझाते रहे उलझे धागे, फरियाते रहे दर्द और प्यार का रिश्ता। भागती छायाओं को बाँधकर खींच लिया था अपनी ओर। गहरी साँसों का समंदर फैल गया। सफेद भाप कोहरे की तरह भर गया कमरे में। बारिशों के बाद जैसे बर्फ के फाहों को हमसे हो गई मोहब्बत। मिलती है गले, सिहराती है तन और पिघल जाती है। ज्यों कोई चूम ले शिद्दत से और अगले ही पल धकेल दे दूर। कोई पहचान नहीं, बस उद्दात भावनाएँ हैं ...कोई सब खोने के पहले कुछ पा लेना चाहता है, किसी को लगता है यह मन्नतों की बारिश है, आंचल में समेट लो जितना भी मिले।
झील के बदन पर बर्फ की परत है। कुहासों के घेरे हटाकर कोई कहता है- बालों को समेटो नहीं, बिखर जाने दो.....फुसफुसाती आवाज ने ढँक लिया बाहरी शोर। कोई रोते-रोते पिघल रहा है। झमाझम पानी में कशितयाँ डूबने लगीं। बहुत तेज बौछार है अबकी बरसात में। शहर डूब रहा है.....पास आओ ...नहीं, दूर जाओ..रोको मुझे.. गुनाह कर बैठूँगा...न जाओ छोडकर।
तुम्हारी बडबडाहट जाने कब थमी, यह मुझे याद नहीं। थरथराते दो बदन एक शॉल में लिपटे पडे रहे रात भर, किसने किसको ढँका, किसने किसे चाहा....रात की छाती पर कुछ दर्ज नहीं।
सुबह कुशन के नीचे से झाँकता था एक कागज का टुकडा ।
उसी फिरोजी शॉल में खुद को कसकर लपेट लिया है मैंने। लाल फूलों की रेशमी चादर है बिछी। उन्मादी हवा चल रही है। फुहारों संग उड रहे कुछ शब्द - मैं आवारा हवा की तरह बहकर निकल जाऊँगा।
अरिंदम... यादों के दरीचों से निकलकर देखा होता एक बार। प्यार गुलमोहर की गिरी पतितयों में छुपा तडप रहा है। देखते तो एक बार आँखें खोल के। जिस्म कसा है शफ्फाफ कपडों में। मेरी रूह सफर पर है। मैं ताबूत में लेटी हुई ममी हूँ, मगर निष्प्राण नहीं हैं आँखें। वो देख रही हैं बारिश...आँधियाँ। मैं भी उडना चाहती हूँ। मुझे रेस लगानी है हवाओं से....पूछना है पत्तों से उनके टूट कर गिरने का सबब। जुबां खामोश है। पेशानी के बल वक्त की मेहरबानी नहीं, मेरे खुदा की दी जागीर है। अटा पडा है मेरा बदन धूल से...बारिश से भीगा है। ये मेरी चाहत तो नहीं थी, यह साजिश है बादलों की, यह गुनाह है बारिश का।
तडक रही है नस माथे की। लगता है प्रेम अब सोनमछरिया बन गया है। किसी ने निकाल दिया है उसे कमलदल वाले तालाब से। गर्म रेत पर छटपटा रहा है। बस कुछ देर और... निकलने वाला ही है प्राण। चट से पलट जाएगी यह सोनमछरिया। साँसें हवा हो जाएँगी, चंचल गोते खत्म। सफेद पेट वाला हिस्सा रह जाएगा आँखों के आगे। चिमटे से पकड दूर फेंक आना होगा इसे। कोई रोता था, कोई रोएगा.. ओह ये दुष्चक्र.....।
हर बरसात फिरोजी शाल ओढे मेरे हाथों में एक कागज का पीला पडा टुकडा होता है, जिसके अक्षर अब धुँधले पड चुके हैं, जिस पर लिखा है अजहर फराज का एक शेर -
तुझसे कुछ और ताल्लुक भी जरूरी है मेरा
ये मोहब्बत तो किसी वक्त भी मर सकती है ।
बारिश का मौसम हर बरस आता है। जमीं में जतन से दबाए बीज धरती का सीना चीर अँखुआते हैं। नन्हें कोंपलों को बारिश सहेजती है, बडा करती है।
एक बार फिर रेल पटरियाँ डूबी हैं बारिश में, गाडियाँ बह रही हैं, भिंडी बाार में स्थित एक सौ सतरह साल पुरानी वह इमारत धाराशाई हो चुकी है... मलबे के नीचे दबी अनगिनत चीजों को खोजते उनके परिजन जहाँ-तहाँ बिलख रहे हैं...
समुद्र में फिर से हाई टाइड आया है, लहरें उफान पर हैं....
कुछ भी तो नहीं बदला इतने बरसों में। बारिश में लोगों के मरने का सिलसिला इस बार भी थमा नहीं... ड्रेनेज सिस्टम में सुधार जाने कब होगा... कभी न रूकने वाली मुंबई जैसे थम-सी गई है। किसी के होने न होने से बेफिक्र बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही... तहस-नहस हो रहे मैंग्रोव के जंगल के आँसू हर कदम अपना हिसाब माँग रहे हैं... मगर मेरे मन की जमीन पर तुम्हारे प्रेम का मैंग्रोव वन हरा-भरा है अब भी।
अरिंदम... बताओ तो, मोहब्बत कहाँ और कैसे मरती है
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हवा के ठंडे झोंके से घबराकर गरम कपडे की तलाश में आलमीरा खोलती हूँ। अभी सर्दियों ने दस्तक नहीं दी है मगर हवा बर्फीली हो गई। ये वक्त नहीं है गरम कपडों का, मगर तन ने सिहरते हुए कहा - मुझे जरूरत है।
आलमीरे के निचले खाने में मुझे अपनी वही फिरोजी शॉल दिखी। तुम्हारा पसंदीदा रंग। हाथ बढाकर उठा लिया। यूं सहलाया जैसे तुम्हारी बाहें हो, जहाँ सुकून के कुछ पल मिले हैं मुझे। अब तुम्हारी यादों के पश्मीने में ढकी खुद को पुरसुकून पा रही हूँ। बाहर अब भी बरसात हो रही है।
घर के नीचे एक नन्हा-सा पिल्ला मारे ठंड के काँय-काँय कर रहा है। झाँककर देखती हूँ उसे। जी चाहता है बाहों में समेट लाऊँ, उसे भी अपनी शॉल की गर्मी दे दूँ। भीगकर बीमार हो जाएगा बिचारा। तभी उसकी माँ आकर उसे सटा लेती है खुद से। मुझे बहुत चैन मिलता है देखकर।
मैं अकेली नहीं हूँ, तन्हा भी नहीं। शॉल खरीदते वक्त दुकानदार ने कहा था- जरा भी ठंड महसूस नहीं होगी इसे ओढकर। तब नहीं पता था यह मेरे लिए सबसे कीमती चीज हो जाएगी। वाकई ठंड महसूस नहीं हुई थी, उस रोज भी और आज भी।
खिडकी के बाहर झाँका फिर। लगातार बारिश। ये मुंबई बरसात में कहर ढाने लगी है। जब मर्जी, जितनी मर्जी बरस पडती है। कब किस वक्त कहाँ फँस जाए कोई, अनुमान नहीं लगा सकता। और ऐसी बारिशों में तन्हाई इस कदर घेरती है कि अपने ही मन को संभालने में सारी उर्जा खर्च हो जाती है। बारिशें तन्हाई लाती है, एक उम्र लग गई इस बात को समझने में।
ऐसा नहीं कि मुझे बरसात प्रिय नहीं। बारिश में बूँदों संग अठखेलियाँ करना मेरा प्रिय खेल रहा था, तब तक, जब तक प्यार नहीं हुआ था। इस प्यार ने मुझसे मेरा प्रिय मौसम छीन लिया। अब उमडते-घुमडते काले बादल सुकून की बारिश के बजाय यादों के चऋवात लाते हैं, जिसमें फंसकर सब कुछ छितरा-सा जाता है।
कुछ लोग करीब से ऐसे गुजर जाते हैं, कि कभी राब्ता ही न रहा हो कोई। ठहरने वाले कडी धूप में जलते रहते हैं, सानिध्य के चंद पलों को सीने में छुपाए बरस गुजार देते हैं, इस इंतजार में कि कभी किसी याद की उंगली थाम वो आएगा, जिसने वादा नहीं किया कभी लौटने का, मगर शायद.....
बरस..बस चंद बरस ही तो गुजरे हैं। चाहो तो मेरी आँखों में पढ लो उस बरसात की बात, मुंबई की बरसात और उम्र भर न भुला सकूं ऐसी वो रात।
आठवें मंजिल पर है फ्लैट और वो मेरा जन्मदिन था, आठ अगस्त। दोस्तों ने सेलिब्रेशन के लिए रेस्टोरेंट न चुनकर फ्लैट चुना। केक उनकी तरफ से और खाना के लिए जोमेटौ या स्वीगी से जो पसंद होगा, सब मंगवा लिया जाएगा, यह आइडिया मेरी फ्लैटमेट स्वाति का था, जिसे नेहा, सुकांत, कोमल और अरिंदम ने स्वीकृति दी थी।
अरिंदम, मेरा कुलीग ..। बाकी सभी पुराने दोस्त थे, जिनसे मैंने ही मिलाया था अरिंदम को यह कहकर, कि बहुत अच्छा है, अकेला है, नया है शहर में और इसे दोस्तों की जरूरत है। हाँ, यह नहीं कहा था उनसे, कि इसे दोस्तों की जरूरत है, और मुझे इसकी। दिल्ली से मुंबई आया था कुछ गम भुलाने और आते ही मेरी आँखों में उतर गया। कोई इंसान ऐसा भी होता है, जिसे देखते ही दिल के तार झनझना जाते हैं, बिना यह जाने कि वह कौन है, किसका है, कभी तुम्हारा हो भी पाएगा या नहीं। फर्स्ट साइट लव शायद इसे ही कहते हैं।
तुम्हें जानकर भी नहीं जाना था, और तुम्हें तो कुछ जानना ही नहीं था...
बरसात के साथ-साथ पार्टी पूरे शबाब में थी। पिज्जा, बर्गर, चिली के साथ रम और रेडवाइन। आजकल पार्टी का मजा ड्रिंक्स के बिना अधूरा है, ऐसा अधिकतर को लगता है, सिवा मेरे। म्यूजिक की धुन में सब थिरक रहे थे। तुम्हारे साथ होने से खुशी दुगुनी हो जाती है और यह खुशी मेरी आँखों से छलकती भी है। तुम्हें महसूस हो न हो, स्वाति को जरूर महसूस होता है। मैंने देखा, वो ज्यादा ख्याल रख रही थी तुम्हारा, शायद मेरी पसंद की खातिर, मेरे प्रिय थे तुम, इस खातिर।
रात के बारह बज गए। एक-एक करके सभी निकल गए अपने घर को। मैं और स्वाति बिखरे समान समेटने में जुटे थे, ताकि सुबह देर से उठने पर भी घर सँवारने के चक्कर में ऑफिस के लिए देर नहीं हो जाए। तभी कॉलबेल बज उठा। स्वाति और मैं सवालिया निगाहों एक दूसरे का चेहरा देखने लगे, कि इस वक्त कौन हो सकता है
तुम थे। हमारे हैरतजदा चेहरे देखकर बोले - टीवी ऑन करो। न्यूज में आ रहा था कि खराब मौसम की वजह से कई रेल लाइनों पर पानी भर गया है जिसके कारण ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं, जिनमें सीएसटी से ठाणे जाने वाली ट्रेन भी बंद कर दी गई है। मौसम विभाग ने दो दिनों तक भारी बारिश की चेतावनी दी है। आज शाम समुद्र में हाई टाइड करीब पाँच मीटर थी। दो दिनों तक स्कूल-कॉलेज भी बंद रहेंगे। मछुआरों को समुद्र से दूर रहने की हिदायत दी जा रही है।
मजबूरी है लडकियों, आज की रात मुझे यहीं ठहरना होगा। कल सुबह ही निकल पाऊँगा सडक के रास्ते। कोई एतराज।
नहीं.. हमदोनों ने एक साथ कहा। मेरे ना कहने का सवाल ही नहीं था। यह संयोग मेरे लिए सुखद था। जिसके सामीप्य की चाहत पहले ही दिन से मेरे दिल में थी, वो आज पूरी की पूरी रात हमारे साथ गुजारने वाला था। मैंने मन ही मन खुद से कहा - आज अनायास मिले मौके को जाया नहीं होने दूँगी। मैं खुलकर तुमसे अपने दिल की बात बता सकती हूँ । तुम्हारे बारे में इतना तो अनुमान था ही कि तुम किसी से प्यार करते थे। यह थे मेरे लिए संतोष का सबब है। कोई कब तक स्मृतियों के सागर में डूबता-उतराता रहेगा। एक न एक दिन थक कर किनारे लगेगा, और वो दिन मेरे जीवन में नए प्रभात का दिन होगा। मैं उस दिन का इंतजार करने के लिए तैयार थी।
अब सोफे पर हम तीन थे। बातचीत का सिलसिला मौसम और सडकों से होते हुए ऑफिस से सिनेमा तक चल निकला। स्वाति तुमसे तुम्हारा अतीत कुरेदने की कोशिश कर रही थी और तुम अपने दिल के कपाट सख्ती से बंद कर मौसम के आशिकाना होने के बाद उसके भयावह स्वरूप की चर्चा कर रहे थे ।
मैं तो रूक गया आज, मेरे पास छत है मगर जो लोग बीच रास्ते में फंसे रह गए, उनका क्या होगा तुम्हारी चिंता जायज थी। मुझे अच्छा लगा कि तुम्हारे अंदर दूसरों के लिए दया है। हम सब चिंतित हो उठे। बाहर दिख रहा था कि सडकें समंदर बन गई हों जैसे। यह बारिश नहीं, कुदरत का कहर है जिससे झुग्गी-झोपडी वालों की जान पर बन आएगी।
वातावरण संजीदा हो गया था। हम कल के मंजर की कल्पना कर आशंकित थे, कि जाने क्या-क्या खबर सुनने को मिले। आसमान से आफत क्यों बरस रही है। ईश्वर..इतने पानी की जरूरत नहीं हम मुंबई वालों को। मन ही मन हम सबने प्रार्थना की।
कुछ देर के बाद कॉफी की तलब हुई। मैंने ड्रिंक्स में दोस्तों का साथ बस दो घूंट का दिया था। मुझे तो असली नशा कॉफी में ही आता है। स्वाति ने हाथ खडे करते हुए कहा कि उसे कुछ नहीं चाहिए, नींद आ रही है। मुझे जब सोना हो, उसके कमरे में आ जाऊँ, वो दरवाजा लॉक नहीं कर रही। एक पल को सोचा कि उसे सच में नींद आ रही है या वो हमें स्पेस देना चाह रही थी। जो भी हो, मुझे खुशी ही हुई स्वाति की इस समझदारी पर। जब तक जागेंगे, ठीक है, फिर अरिंदम मेरे कमरे में सो रहेगा, यह तय हो चुका था हमारे बीच।
स्वाति गुडनाइट के बाद अपने कमरे में चली गई और मैं तुम्हारे हाँ बोलने पर किचन में कॉफी बनाने। किचन से लौटी तो देखा तुम्हारे हाथ में ड्रिंक थी और तुम खिडकी से बाहर झाँकते हुए गुनगुना रहे थे शेराज सागर की गजल.....
मैं तेरी रात के पिछले पहर का लमहा हूँ
जो हो सके तो कभी जाग के गुजार मुझे
तुम्हें पता नहीं चला कि ठीक पीछे मैं खडी हूँ। चौंके मेरी आवाज से - काश! कोई मेरे लिए ये सोचे, ये कहे मैं तो किसी और के लिए सोच रहा हूँ....
तुम्हारी बात इग्नोर की मैंने और कहा - जब ड्रिंक ही लेना था, तो कॉफी के लिए हाँ क्यों कहा
मेरे उलाहने पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी तुमने।
दस मिनट के एकांत ने तुम्हारा मूड बदल दिया था। टीवी की बहस और मौसम के कहर से निकलकर तुम पत्तों पर ठहरती और गिरती बारिश की बूँदों में अपना साम्य ढूँढने लगे थे जैसे। मैंने देखा, वही दर्दीली मुस्कान तुम्हारे लबों पर तैर रही है, जो अक्सर परेशान करती है मुझे। सबके बीच भी तुम कभी-कभी इतने खोये महसूस होते हो कि तुम्हारे लबों से निकलने वाली बातें और आँखों में उठने वाले भाव सदा भ्रमित करते हैं मुझे कि तुम कह क्या रहे हो और सोच क्या रहे हो।
तो मोहब्बत में डूबे हो उदासी की दीवार तोडकर उस तह तक पहुँचने का रास्ता तलाश रही थी मैं, जिसे पाना अपना लक्ष्य मान लिया था।
मुझे तो छुआ भी नहीं मोहब्बत ने लरज गई जुबां यह कहते हुए, जैसे किसी पाकीजा चाहत को जमीं पर उतारने के लिए हजार मन्नते माँगे कोई और वह दुआ नाकबूल हो जाए।
जो जी रहे जब से किसी का नाम लिए, वो क्या है
वो प्यास है बस
तो.. मोहब्बत क्या होती है
पानी
वो पानी, जो पूरी मुंबई को बहा ले जा रही है, उसी पानी की चाहत है तुम्हें
हाथ बाहर निकाल कुछ बूँदे समेटी हथेलियों में और तुम्हारी ओर उछाल दिया। चेहरे पर पडी बूँदों को तेजी से पोंछ डाला था तुमने। मेरी शरारत व्यर्थ चली गई। तुम्हारे चेहरे की उदासी और गहरी होने लगी जैसे साँझ को सूरज ढलते वक्त पीछे से कालिमा दौडती चली आती है और समूची पृथ्वी को अँधेरे की गिरफ्त में ले लेती है।
इतनी उदासी क्यों हैं तुम्हारा दर्द मेरी आँखों में उतर आया था और बेचैन हो गई थी मैं।
प्यार केवल दर्द देता है भारती, मत पडना इस प्यार में कभी। आँसू, दुख और तन्हाई के सिवा कुछ हासिल नहीं होता इससे।
कोई सोचकर किसी से प्यार करता है क्या कैसे कहूँ तुमसे अरिंदम, यह अपने बस में नहीं। मन में कहा मगर यह बात तुमसे कहना मुनासिब न था। मेरे दिल में तुम्हारे लिए भावनाओं का आकाश है, क्या यही कम है कि तुम मुझे दोस्त समझते हो। काश ! कि ये निगाहें मुझ पर ही उठती और रूकतीं। कई बार चाहा कि दिल की चाहत को तुमसे साझा कर दूँ, मगर तुम्हारे दिल पर तो किसी और का नाम चस्पां है । कौन है वह खुशनसीब अनदेखे असितत्व पर ही ईष्या दग्ध हो उठा था मन। शायद इसलिए कि बातों ही बातों में अहसास दिलाया था तुमने कि जो गुजर चुका वो आज भी है और कल भी कुछ नहीं बदलने वाला। तुम किसी के प्यार में थे नहीं, हो और रहोगे सदा।
ऐसे मौसम बहुत तंग करते हैं मुझे। उफ...ये बारिश क्यों होती है। तन्हाई और बढ जाती है ऐसे में। जी करता है किसी के आगोश में सिमट जाऊं। मुझसे नहीं खुद से कह रहे थे तुम। ऐसे तो संयत ही देखा है हमेशा तुम्हें। हाथ में रम की जो खाली गिलास है, शायद यह उसी का असर है।
ऐसे चुप क्यों अरिंदम..बात करो मुझसे यह कहते वक्त जी चाहा खिडकी से बाहर झाँकते तुम्हारे चेहरे को अपनी ओर खींचकर मासूम बच्चे की तरह सीने में भींच लूं।
उसकी बहुत याद आ रही है भारती। जी कर रहा किसी के कांधे पर सर रखकर रो दूँ उसकी याद में।
रो लो, इसके लिए कांधा क्यों। आदत हो जाती है फिर। किसी पर निर्भर होना अच्छी बात नहीं।
जुबां से निकले शब्द थे मगर दिल चाह रहा था कि सीने में छुपा लूँ तुम्हारा चेहरा और सारे गम सोख लूँ। क्यों हो अरिंदम तुम मेरे होते हुए इतने तन्हा। निकल आओ उन गलियों से बाहर, जहाँ से एक बार गुजर चुके हो। नए रास्ते पर चलो। अतीत को सीने से चिपटाए हुए न जी पाओगे न मर पाओगे। मगर दिल की बातें तुमसे कह पाना कितना मुशिकल है मेरे लिए, यह मैं ही जानती थी।
और कितना तन्हा करूँ खुद को किसी भी बात से दिल नहीं बहलता अब।
रो पडने की कगार से खींचकर वापस लाना चाहा था तुम्हें।अचानक क्या हुआ कि इस कदर टूटने लगे हो तुम। यह एकांत और बरसात। जाने कौन- सी यादे हैं जो सीने में दबे जख्म से रिस रही है। तुम टूटोगे तो मैं भी टूट जाऊंगी अरिंदम, शायद इसका अनुमान नहीं तुम्हें। मगर यह आत्मालाप तुम तक नहीं पहुँचने दिया मैंने।
खुद के साथी बनो ...कोई साथ नहीं होता हमेशा किसी के लिए तुम्हारे लिए तुमको ही समझाना चाहा क्योंकि यह खुद को समझाने से आसान लगा था उस वक्त।
इस बात का जवाब तुमने अपने शब्दों में नहीं, एक अनसुने शेर से दिया। शेर-ओ-शायरी से बेइंतहा मोहब्बत थी तुम्हें - मेरा गुस्सा ही बढाएंगे दिलासे तेरे
मुझको सीने से लगा यार, मुझे रोना है (विक्रम बैरागी)
यह आमंत्रण है या महज शेर, तय करना मुशिकल हो रहा था मेरे लिए। तुमने आज ज्यादा ड्रिंक ले ली है या मौसम ने गम के तराने छेड दिए हैं, या फिर जागती रात का असर है कि वह बार-बार बारिश के पार उन यादों को न्योत रहा है जिसने जख्मी कर रखा है एक जमाने से तुम्हें।
क्यों रोते हो इतना.. बेवफा को भुला देना बेहतर होता है अरिंदम। इस तरह मत घुलो।
हम जैसे रोते रहने वालों से ही ये दुनिया खूबसूरत है, जरा गौर करो तो फिक्क से हँस पडे थे फिर तुम। मैं आश्चर्य से देखती रह गई कि आँसू और मुस्कान को कैसे साथ-साथ साध रखा है तुमने।
किसकी जिंदगी में दुख नहीं। हाँ, तुम्हारी तरह उसे सीने से लगाकर कोई नहीं घूमता।
हाँ...सबकी जर्नी में बहुत कुछ कॉमन होता है, पर सब कुछ एक सा नहीं होता। दैट्स लाइफ आफ्टरऑल। हर पहेली हम नहीं सुलझा सकते।
जिसके बिना जिया नहीं जा रहा, उसे हर जतन करके रोकना चाहिए था। मेरी आवाज तल्ख थी, मुझे अहसास हुआ इसका। शायद उस अनजाने का बार-बार जिक्र आना मुझे आहत कर रहा था। मेरे आसपास तुम थे और किसी तीसरे की उपसिथति बहुत खटक रही थी मुझे।
सन्नाटा घिर गया फिर। एकदम चुप थे तुम। ऐसी चुप्पी कि लगे सदियों से नदी के पाट पर दो लोग खडे हैं इस इंतजार में कि कोई तो आवाज दे पहले। दिल ने कहा - काश ! दुखों की पोटली खोल दे अरिंदम तो उसके कुछ दुख अपने सीने में छुपा लूं। टीसते जख्म को दबा कर वो कीलें निकाल दूँ, जो बार-बार घायल करती है मेरे अरिंदम को। उसका कुछ भार हल्का कर दूँ, कुछ बाँट लूँ। लोग प्रेम में बदल जाते हैं, यह तो सुना था, तुम्हें देख भी रही और अपने अंदर भी वही बदलाव महसूस कर डरने लगी हूँ। तुम्हारी उदासी और खींचती है मुझे।
सन्नाटे को चीरती-सी आवाज निकली.. बहुत याद आ रही किसी की..आज तो बहुत ही ज्यादा ।
मेरे सामने तो मत ही कहो प्लीज, मुझे चिढ होती है वाकई मुझे चिढ होने लगी उस लडकी के जिक्र से जिसका प्रभाव इतना असरदार था कि अपने न होने के बाद भी तुम्हें प्रेम के शिकजें में इस तरह जकड रखा है कि उसके सिवा कुछ और देख नहीं पा रहे थे तुम।
तो किससे कहूँ, क्या कहूँ फिर
अरिंदम, ऐसे दिल जलाओगे अपना तो कैसे काम चलेगा। बीती बात पर मिट्टी डालो
लो...डाल दिया, अब मुस्कराये थे तुम।
मैं हूँ न.. कहकर सकपका गई मैं।
तुम भी तो एक दिन चली जाओगी। अपने रौ में बोलते रहे तुम। फिर तुम याद आने लगोगी, तो और कहाँ जाऊँगा। कहाँ से इतनी मिट्टी लाऊँगा। सब ऐसे ही होते हैं। कोई ठहरता नहीं मेरे पास, मेरे सिवा।
मैं कहीं नहीं जाऊँगी मेरी आवाज दृढ थी।
मेरा ठिकाना नहीं, मैं तो आवारा हूँ, टिकूँगा कब तक ये नहीं पता। दिल्ली से मुंबई, यहाँ जी नहीं लगा तो कहीं और...
नहीं जाने दूँगी तुमको भी कहीं।
इतने करीब मत आओ, इतनी केयर मत करो भारती। मेरे जीवन मे दुख और आँसू के सिवा कुछ नहीं। मैं अधूरा इंसान, मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं।
आह में लिपटी आवाज सीना चीरने लगी मेरा। तुम समझते हो मुझे, ऐसा लगा है कई बार। तुमने देखा तो होगा प्यार छलकते हुए इन आँखों से। आखिर तुमने भी तो किसी को प्यार किया है। प्रेम कहाँ छुपता है। मैं खुद से बातें कर रही थी और तुम कहते जा रहे थे -
उसे सब कुछ दिया था, अपना वक्त, अपना प्यार। जीवन की हर खुशी देना चाहता था उसको। अब तो कई साल गुजर गए। सब धुआँ हो गया। खालीपन है सीने में और है इंतजार। उसका नहीं, मौत का। उसे तो अपने ही हाथों विदा कर दिया था। पापा और उसमें, किसी एक को चुनना था। फर्ज ने प्रेम की कुर्बानी ले ली। आज देखो, न पापा मेरे साथ हैं, न वो। तब क्या जानता था कि वो मेरी जिंदगी है, जिसे अपने ही हाथों विदा कर दिया मैंने। खैर...दैटस लाइफ..द थिंग्स शुड गो ऑन।
तुम खुद को संभालने का भी जतन कर रहे थे।
आओ, आज तुम्हें सब बता दूँ..., सारी वहशत, पागलपन ...तुम समझोगी न मुझे ! आओ भारती, करीब बैठो।
मैं तुम्हारे करीब चली गई। कमरे में दीवान पर टेक लगाकर बैठे थे तुम। तकिया पीठ के नीचे दबा था। सामने की खिडकियां खुली थीं, जिससे बारिश की छींटे अंदर आ रही थी। कभी-कभी बदन को छूती वो छींटे तो अनबुझी सी खुशी महसूस होती। सुहाना मौसम और तुम्हारा साथ। यह मेरे लिए स्वप्न के समान था कि तुम मेरे करीब बैठे हो। इतने करीब कि चाहूँ तो हाथ बढाकर छूँ लूँ। सामने बैठकर एकटक देखने लगी थी तुम्हारा चेहरा, एक ऐसा चेहरा जो बेहद मासूम था मगर जिसकी आँखों में सिमटा असीम दर्द आज बह निकलने को आमदा था।
मैंने अपने बालों को क्लचर से आजाद कर दिया। पीछे से आती हवा उनको आवारा बना कर बिखरा रही थी। मैं प्रतीक्षा में थी कि तुम कुछ और कहो मुझसे।
तुम देख रहे थे मुझे, एकटक, जैसे किसी की निगाहें अजनबी चेहरे पर टिक जाती है बार-बार।
खूबसूरत हो तुम। पहली बार यह कहा था तुमने ।
जी चाहा वक्त को थाम लूँ। थाम लूँ तुम्हारी निगाहों को अपने ऊपर, कि लौट न पाए वो वहाँ, जहाँ जाकर तुम्हारी आत्मा तडपती है। पूरी दुनिया से अदृश्य हो जाऊँ। तुम्हारे लब बार-बार दुहराएँ....खूबसूरत हो तुम और इस सुंदरता के पाश में बँध जाओ।
मगर तुम डूबे नहीं मुझमें, बताने लगे-
उससे जब मिला था अंतिम बार, रोया था जी भर के। हम दोनों घंटो रोते रहे, एक-दूसरे को चुप कराते रहे। जब भी मिले, एक फासले से मिले थे। उसे मेरी ही होना है, यह महसूस करता था मैं। उसकी सुरक्षा और उसकी खुशी, इसके अलावा कुछ नहीं चाहा था मैंने। उदास आवाज में यादों का सफर तय कर रहे थे तुम और आज इस सफर में मैं भी साथ थी ।
वो जा रही थी, सदा के लिए। मैंने रोते हुए अंतिम ख्वाहिश जताई - छू लूँ एक बार तुमको, किसी और के होने के पहले।
छू लो..कहकर हाथ बढा दिया उसने।
एक पल को ठिठका मैं, हँसा- मुझे चूमना है आज तुम्हें। गुनाह है तो गुनाह सही...हर सजा मंजूर। दो इजाजत तो चूम लूँ....
रो पडे थे तुम...नहीं चूम पाया उसे। बस उसका हाथ थामे रोता रहा। यह ख्वाहिश आज भी जलाती है मुझे। जिसे चाहा, उसके स्पर्श को संजो लूँ, इतनी भी मोहलत किस्मत ने नहीं दी मुझे।
मेरे हाथ अनायास तुम्हारी हथेली पर कस गये। मेरा मन उस आवाज की हथेली थाम कर चलने लगा। रूहानियत भरी काँपती आवाज बारिश की बूँदों के साथ लहरा रही थी। हवा में लहराते बालों के पीछे से झाँकती उन आँखों में मैं अपना अक्स ढूंढने लगी। जैसे वो उसकी न होकर मेरी ख्वाहिश को शब्द दे रहा है। इस अहसास से मेरी आँखें मुँद गई कि मेरी हथेलियों को चूम रहा है अरिंदम। तसव्वुर में धीमी सी सरगोशी हुई। मेरे कान की लौ के पास फुसफुसाकर बोलने लगे - आओ छू के देखूँ अंतिम बार...एक बार तो चूम लूँ तुम्हारी घनेरी पलकें जिनमें मेरे सपने सजा करते थे। कल मेरा कोई अखितयार नहीं होगा इस पर, मगर आज तो तुम मेरी हो....
बारिश गिरती रही रात भर, दर्द उतरता रहा। आँखों ने देखा, अनूठे स्वाद को जिह्वा में घुलते हुए। हवाओं ने कानों में पहुँचाए लफ्जों के शरारे। प्यार रेशे-रेशे में उतरने लगा। अरिंदम के दर्द ने रास्ता बदला, शिराओं से होते हुए पैरों को चूम, ठहर गया। उसकी अधमुँदी आँखों में बिछोह के पहले का प्रेम पूरी शिद्दत से मचल रहा था और मैं अपनी चाहत को फलित होते देख रही थी।
खोने के डर से परे रात चंचल थी। जिंदगी ने दर्द को धकेल के खिडकी के पार उतार दिया। बाहर से आती हल्की पीली रौशनी के साए में चमकता रहा कंचन-सा बदन, जैसे बर्फ की चोटियों में धूप ठहरती है। कोई दर्द पीता रहा, कोई लुभाता रहा। जीवन का भरम ऐसा कि रात गाती रही, बारिश गिरती रही। भीगते शहर में, डूबते दो लोग, जिनके बह जाने की सन्हा कहीं दर्ज नहीं होगी।
उलझे बालों पर कंघी करती रही उंगलियाँ, फँसती-निकलती रही जिंदगी। हम सुलझाते रहे उलझे धागे, फरियाते रहे दर्द और प्यार का रिश्ता। भागती छायाओं को बाँधकर खींच लिया था अपनी ओर। गहरी साँसों का समंदर फैल गया। सफेद भाप कोहरे की तरह भर गया कमरे में। बारिशों के बाद जैसे बर्फ के फाहों को हमसे हो गई मोहब्बत। मिलती है गले, सिहराती है तन और पिघल जाती है। ज्यों कोई चूम ले शिद्दत से और अगले ही पल धकेल दे दूर। कोई पहचान नहीं, बस उद्दात भावनाएँ हैं ...कोई सब खोने के पहले कुछ पा लेना चाहता है, किसी को लगता है यह मन्नतों की बारिश है, आंचल में समेट लो जितना भी मिले।
झील के बदन पर बर्फ की परत है। कुहासों के घेरे हटाकर कोई कहता है- बालों को समेटो नहीं, बिखर जाने दो.....फुसफुसाती आवाज ने ढँक लिया बाहरी शोर। कोई रोते-रोते पिघल रहा है। झमाझम पानी में कशितयाँ डूबने लगीं। बहुत तेज बौछार है अबकी बरसात में। शहर डूब रहा है.....पास आओ ...नहीं, दूर जाओ..रोको मुझे.. गुनाह कर बैठूँगा...न जाओ छोडकर।
तुम्हारी बडबडाहट जाने कब थमी, यह मुझे याद नहीं। थरथराते दो बदन एक शॉल में लिपटे पडे रहे रात भर, किसने किसको ढँका, किसने किसे चाहा....रात की छाती पर कुछ दर्ज नहीं।
सुबह कुशन के नीचे से झाँकता था एक कागज का टुकडा ।
उसी फिरोजी शॉल में खुद को कसकर लपेट लिया है मैंने। लाल फूलों की रेशमी चादर है बिछी। उन्मादी हवा चल रही है। फुहारों संग उड रहे कुछ शब्द - मैं आवारा हवा की तरह बहकर निकल जाऊँगा।
अरिंदम... यादों के दरीचों से निकलकर देखा होता एक बार। प्यार गुलमोहर की गिरी पतितयों में छुपा तडप रहा है। देखते तो एक बार आँखें खोल के। जिस्म कसा है शफ्फाफ कपडों में। मेरी रूह सफर पर है। मैं ताबूत में लेटी हुई ममी हूँ, मगर निष्प्राण नहीं हैं आँखें। वो देख रही हैं बारिश...आँधियाँ। मैं भी उडना चाहती हूँ। मुझे रेस लगानी है हवाओं से....पूछना है पत्तों से उनके टूट कर गिरने का सबब। जुबां खामोश है। पेशानी के बल वक्त की मेहरबानी नहीं, मेरे खुदा की दी जागीर है। अटा पडा है मेरा बदन धूल से...बारिश से भीगा है। ये मेरी चाहत तो नहीं थी, यह साजिश है बादलों की, यह गुनाह है बारिश का।
तडक रही है नस माथे की। लगता है प्रेम अब सोनमछरिया बन गया है। किसी ने निकाल दिया है उसे कमलदल वाले तालाब से। गर्म रेत पर छटपटा रहा है। बस कुछ देर और... निकलने वाला ही है प्राण। चट से पलट जाएगी यह सोनमछरिया। साँसें हवा हो जाएँगी, चंचल गोते खत्म। सफेद पेट वाला हिस्सा रह जाएगा आँखों के आगे। चिमटे से पकड दूर फेंक आना होगा इसे। कोई रोता था, कोई रोएगा.. ओह ये दुष्चक्र.....।
हर बरसात फिरोजी शाल ओढे मेरे हाथों में एक कागज का पीला पडा टुकडा होता है, जिसके अक्षर अब धुँधले पड चुके हैं, जिस पर लिखा है अजहर फराज का एक शेर -
तुझसे कुछ और ताल्लुक भी जरूरी है मेरा
ये मोहब्बत तो किसी वक्त भी मर सकती है ।
बारिश का मौसम हर बरस आता है। जमीं में जतन से दबाए बीज धरती का सीना चीर अँखुआते हैं। नन्हें कोंपलों को बारिश सहेजती है, बडा करती है।
एक बार फिर रेल पटरियाँ डूबी हैं बारिश में, गाडियाँ बह रही हैं, भिंडी बाार में स्थित एक सौ सतरह साल पुरानी वह इमारत धाराशाई हो चुकी है... मलबे के नीचे दबी अनगिनत चीजों को खोजते उनके परिजन जहाँ-तहाँ बिलख रहे हैं...
समुद्र में फिर से हाई टाइड आया है, लहरें उफान पर हैं....
कुछ भी तो नहीं बदला इतने बरसों में। बारिश में लोगों के मरने का सिलसिला इस बार भी थमा नहीं... ड्रेनेज सिस्टम में सुधार जाने कब होगा... कभी न रूकने वाली मुंबई जैसे थम-सी गई है। किसी के होने न होने से बेफिक्र बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही... तहस-नहस हो रहे मैंग्रोव के जंगल के आँसू हर कदम अपना हिसाब माँग रहे हैं... मगर मेरे मन की जमीन पर तुम्हारे प्रेम का मैंग्रोव वन हरा-भरा है अब भी।
अरिंदम... बताओ तो, मोहब्बत कहाँ और कैसे मरती है
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